मुजफ्फरनगर । मोदी सरकार ने मनमोहन सरकार की तुलना में फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) को अधिक बढाया और अधिक खरीद की है।
अशोक बालियान, चेयरमैन, पीजेंट वेलफेयर एसोसिएशन का कहना है कि मोदी सरकार ने न केवल फसलों का दाम बढ़ाया है, बल्कि उसकी खरीद और लाभार्थी किसानों की संख्या में भी इजाफा हुआ है। केंद्रीय कृषि मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार सभी फसलों को मिलाकर मोदी सरकार ने साल 2014 से मार्च 2022 तक किसानों को 14.25 लाख करोड़ रुपये दिए हैं। किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के रूप में इतना पैसा कभी नहीं मिला। जहां तक उससे पहले की बात है तो मनमोहन सरकार के कार्यकाल में साल 2009 से 2014 तक किसानों को 4.60 लाख करोड़ रुपये एमएसपी के तौर पर मिले थे।
केंद्रीय कृषि मन्त्री श्री नरेन्द्र सिंह तोमर के मुताबिक साल 2009 से 2014 तक देश भर में सरकार ने 2,89,140 करोड़ रुपये का धान खरीदा गया था। लेकिन मोदी सरकार के कार्यकाल में साल 2014 से 2021-22 में मार्च तक रिकॉर्ड 8,91,557 करोड़ रुपये का धान खरीदा गया है। यानी धान खरीद पर सरकार ने किसानों से पहले के मुकाबले कहीं बहुत अधिक पैसा दिया है। किसानों को इतना पैसा देने के बावजूद कुछ किसान संगठन व विपक्ष के तमाम नेता यह आरोप लगाते रहते हैं कि सरकार एमएसपी की व्यवस्था खत्म करना चाहती है।
केंद्र की मोदी सरकार ने वर्ष 2019-20 में खरीफ फसलों में रागी के एमएसपी 1900 रुपये से बढ़ाकर 2,897 रुपये प्रति क्विंटल, मक्का के एमएसपी को 1425 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 1700 रुपये प्रति क्विंटल, मूंग के एमएसपी को 5,575 रुपये से बढ़ाकर 6,975 रुपये प्रति क्विंटल, उड़द के एमएसपी को 5400 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 5600 रुपये प्रति क्विंटल व बाजरा के एमएसपी को 1425 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 1950 रुपये किया था।
केंद्र की मोदी सरकार ने वर्ष 2022-23 में खरीफ फसलों में रागी का एमएसपी 3578 रुपये प्रति क्विंटल, मक्का के एमएसपी 1962 प्रति क्विंटल, मूंग के एमएसपी को 7755 रुपये प्रति क्विंटल, उड़द का समर्थन मूल्य को 6600 रुपये प्रति क्विंटल व बाजरा के एमएसपी को 2350 रुपये प्रति क्विंटल किया है।
वर्ष 2022-23 में रबी फसलों में गेहूं का एमएसपी 2,015 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 2,125 रुपये प्रति क्विंटल, मसूर का एमएसपी 5500 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 6000 रुपये प्रति क्विंटल और सरसों के एमएसपी में 5050 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़ाकर की 5450 रुपये प्रति क्विंटल किया है। दलहन में चना के लिए एमएसपी को 5,230 रुपये प्रति क्विंटल से 105 रुपये बढ़ाकर 5,335 रुपये प्रति क्विंटल व मसूर का एमएसपी 5,500 रुपये प्रति क्विंटल से 500 रुपये बढ़ाकर 6,000 रुपये प्रति क्विंटल किया गया है।
साल 2009-10 से लेकर 2013-14 की तुलना में देखें तो बीते 2014-15 से लेकर बीते 5 साल 2019-20 के दौरान गेहूं की एमएसपी में 1.77 गुना का इजाफा हुआ था। गेहूं की फसलों के लिए पहले जहां 1.68 लाख करोड़ रुपये का पेमेंट हुआ था, वहां बीते 5 साल में यह पेमेंट 2.97 लाख करोड़ रुपये का हुआ था। इसी प्रकार दालों के लिए एमएसपी में 75 गुना का इजाफा हुआ है। साल 2009-10 से लेकर 2013-14 के बीच दालों के लिए कुल 645 करोड़ रुपये का एमएसपी पेमेंट हुआ था, लेकिन, बीते पांच साल 2019-20 में यह आंकड़ा 49,000 करोड़ रुपये तक पहुंच चुका है।
बीते 5 साल में धान की फसलों पर मिलने वाले MSP में 2.4 गुना इजाफा हुआ है। साल 2009-10 से लेकर 2013-14 में किसानों को 2.06 लाख करोड़ रुपये का एमएसपी पेमेंट हुआ था। जबकि, बीते पांच साल 2019-20 में यह बढ़कर 4.95 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया है।
केंद्रीय पशुपालन राज्य मन्त्री डॉ संजीव बालियान के अनुसार यदि हम उत्तरप्रदेश के गन्ना किसान की बात करें, तो अखिलेश यादव सरकार में साल 2014-2015 में गन्ना मिलों ने 744.83 लाख टन गन्ना खरीदा था। और योगी सरकार में साल 2021- 2022 में यह बढ़कर 1016.33 लाख टन गन्ना खरीदा गया है। साल 2007 से 2017 तक जितना कुल भुगतान किसानों को हुआ था, उतना योगी सरकार ने सिर्फ 4 साल में कर दिया था। यह सच है कि योगी सरकार ने अपने पिछले कार्यकाल में गन्ने का एसएपी केवल 35 रुपये प्रति क्विटंल बढ़ाया था, जबकि अखिलेश सरकार के कार्यकाल में गन्ने का एसएपी 65 रुपये प्रति क्विटंल बढ़ा था, लेकिन अखिलेश सरकार में गन्ना मिलों ने योगी सरकार के मुकाबले कम गन्ना खरीद की थी और योगी सरकार ने अधिक गन्ना खरीद की, जिससे किसानों का अधिक गन्ना चीनी मीलों पर गया और किसानों को अधिक लाभ हुआ।
देश में कुल 520 चीनी मिलों में से 119 उत्तर प्रदेश में हैं। सपा और बसपा की सरकारों ने चीनी मिलों को बेचकर गन्ना किसानों को बर्बाद करने का कार्य किया था। पिछली सरकारों में मायावती सरकार में 19 चीनी मिलें व् अखिलेश सरकार में 10 चीनी मिलें बंद की गईं थी। जबकि योगी सरकार नें बंद पड़ी चीनी मिलों को फिर शुरू कराया था। योगी सरकार ने बंद चीनी मिलों को चलाकर, डेढ़ दर्जन से ज्यादा चीनी मिलों की पेराई क्षमता में वृद्धि कर और नई चीनी मिलों की स्थापना कर गन्ना किसानों को राहत देने का कार्य किया है। हम उम्मीद करते है कि उप चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश में गन्ने के राज्य समर्थित परामर्श मूल्य (एसएपी) घोषित किया जायेगा।
वर्तमान में, सरकार खरीफ और रबी दोनों मौसमों में उगाई जाने वाली 23 फसलों के लिए एमएसपी तय करती है। सरकार की तरफ से MSP (न्यूनतम समर्थन मूल्य) का एलान कृषि लागत व मूल्य आयोग (Commission for Agricultural Costs & Prices, CACP) की सिफारिश पर वर्ष में दो बार रबी और खरीफ के मौसम में किया जाता है। गन्ने का समर्थन मूल्य गन्ना आयोग तय करता है और कुछ प्रदेशों में राज्य सरकार तय करती है।