मुजफ्फरनगर । जाट लैंड में समाजवादी पार्टी ने जाट के मुकाबले जाट को खड़ा कर अपने इरादे जाहिर कर दिए हैं। भाजपा के संभावित प्रत्याशी डॉ संजीव बालियान के मुकाबले में उतारे गये पूर्व सांसद हरेंद्र मलिक जिले की राजनीति के पुराने दिग्गजों में हैं। सपा ने उन्हें राष्ट्रीय महासचिव भी बनाया था। सपा-रालोद गठबंधन में लोकसभा के टिकट के लिए उनका नाम सबसे आगे माना जा रहा था। लेकिन रालोद नेता उनके नाम पर सहमत नहीं थे। इसके बाद रालोद गठबंधन से अलग होकर एनडीए में चला गया। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने पिछले दिनों लखनऊ में जिले के नेताओं की बैठक बुलाई थी, जिसमें पूर्व सांसद के नाम पर ही भरोसा जताया गया। उनके टिकट की विधिवत घोषणा सोमवार को की गई है। हरेंद्र मलिक जिले की छात्र राजनीति से निकलकर राज्यसभा तक पहुंचे। मलिक ने 1982 में बीडीसी का चुनाव लड़ा। उनके भाई बघरा के ब्लॉक प्रमुख चुने गए थे। 1985 में पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह ने उन्हें खतौली से टिकट दिया तो वह पहली बार विधायक चुने गए थे। इसके बाद 1989, 1991 और 1993 में वह बघरा सीट से विधायक रहे। 2004 में यूपी में विस्तार की चाह में इंडियन नेशनल लोकदल ने उन्हें राज्यसभा भेजा था।
पूर्व सांसद हरेंद्र मलिक ने सपा के टिकट पर मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट से 1998 में पहला और 1999 में दूसरा चुनाव लड़ा। 2009 में कांग्रेस के टिकट पर मैदान में उतरे। इसके बाद 2019 में कांग्रेस के टिकट पर ही कैराना लोकसभा सीट से चुनाव लड़े। पूर्व सांसद ने राजनीति की शुरुआत लोकदल से की थी। इसके बाद वह सपा में शामिल हुए। सपा छोड़कर इनेलो का हिस्सा बनें और फिर कांग्रेस में लंबी पारी खेली। कांग्रेस के बाद दोबारा सपा में शामिल हुए और वर्तमान में राष्ट्रीय महासचिव हैं। हरेंद्र मलिक ने अपने बेटे पंकज मलिक को तीसरी बार विधानसभा पहुंचाकर अपनी ताकत दिखाई। अब देखना होगा कि भारतीय जनता पार्टी के लिए वे क्या मुश्किल खड़ कर पाएंगे?
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