गुरुवार, 15 फ़रवरी 2024

दिल्ली मार्च समाधान नहीं टकराव के लिए है: बालियान


मुजफ्फरनगर । किसान संगठन पीजेंट वेलफ़ेयर एसो. पंजाब के दो किसान संगठनों के "दिल्ली चलो" आंदोलन का समर्थन नहीं करती। चेयरमैन अशोक बालियान ने कहा कि किसान संगठन पीजेंट वेलफ़ेयर एसो. पंजाब के दो किसान संगठनों के "दिल्ली चलो" आंदोलन का समर्थन नहीं करती है क्योंकि इन संगठनों का "दिल्ली चलो" आंदोलन राजनीति से प्रेरित होता दिख रहा है। हमने पिछले सप्ताह केंद्रीय कृषि मन्त्री अर्जुन मुंडा से मिलकर किसानों को फसल की लाभकारी मूल्य दिलाने के लिए एमएसपी की व्यवस्था को किसान हित में बेहतर करने, जिन फसलों का एमएसपी तय नहीं होता उन फसलों के लिए बनी बाज़ार हस्तक्षेप योजना को प्रभावी बनाने, एमएसपी में कुछ और कृषि उपज को शामिल करने व डॉ स्वामीनाथन की रिपोर्ट में शामिल सी2 (C2) फ़ार्मूले के आधार पर एमएसपी घोषित करने पर वार्ता हुई थी। कृषि मन्त्री अर्जुन मुंडा ने कहा था कि हम इन विषयों पर सकारात्मक ढंग से विचार करेंगे और आगे भी बातचीत जारी रखेंगे।

      किसान संगठन पीजेंट वेलफ़ेयर एसो. के चेयरमैन अशोक बालियान ने कहा है कि जिस तरह से किसान संगठन जबरदस्ती दिल्ली की ओर मार्च करने की कोशिश कर रहे हैं हमारा संगठन उसके खिलाफ हैं। हम किसी भी तरह के हिंसक किसान आंदोलन के सख्त खिलाफ है।क्योंकि हिंसक आंदोलन के नतीजे किसानों को भुगतने पड़ते है।

     देश के कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा ने भी कहा कि वे सारे किसान संगठनों से अनुरोध करते है कि किसी भी समस्या का समाधान बातचीत के जरिए हो सकता है।वे अन्य मंत्रियों के साथ खुद चंडीगढ़ में जाकर किसान नेताओं से दो बार मिल चुके है।

      पीजेंट वेलफ़ेयर एसोशिएसन के चेयरमैन अशोक बालियान व अपने एलाइंस के किसान नेताओं के साथ 18 फ़रवरी को कृषि उपज पर लागत के आधार पर लाभकारी मूल्य की मांग को लेकर आगामी रणनीति पर चर्चा करेंगे। वहीं प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में विसंगति दूर करने व किसान सम्मान निधि में बढ़ोतरी की मांग पर भी बात होगी।

     किसान हित के तीन कृषि क़ानून के विरोध में चले आंदोलन में किसान नेता कह रहे थे कि कृषि मंडी समाप्त हो जाएगी, जबकि वर्तमान सरकार ने कृषि मंडियों को आधुनिक बनाया है। कृषि मंडियों से खरीद के रिकार्ड कायम हुए हैं। 

     आंदोलन के समय ये किसान नेता ये भी कह रहे थे कि न्यूनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था समाप्त हो जाएगी, लेकिन वर्तमान सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य में अब तक की सर्वाधिक वृद्धि की है।

     देश में अस्सी प्रतिशत से अधिक किसान छोटे व मध्यम श्रेणी के हैं। इन सभी लोगों के लिए व्यवस्था में बदलाव व सुधार आवश्यक था।कृषि उत्पाद की खरीद से बिचौलिओं को हटाना व किसानों को विकल्प प्रदान करना जरूरी था।तीन नए कृषि कानूनों के माध्यम से यह कार्य किया गया था।

    इससे बिचौलिया वर्ग को परेशानी हुई और उन्होंने किसानों के नाम पर आंदोलन की भूमिका बना दी। विगत छह-सात वर्षों से सक्रिय आंदोलनजीवियों ने इसे अवसर के रूप में लिया और कथित किसान आंदोलन शुरू हो गया। यह भरपूर सुविधाओं के साथ संचालित आंदोलन था।इन क़ानूनों के वापिस होने के बाद किसान वही चला गया, जहां वह पहले से था।

     दिल्ली में चले सीएए विरोध की तर्ज पर कहा जा रहा था कि कृषि कानूनों से किसानों की जमीन छीन ली जाएगी। जबकि वास्तविकता यह थी कि पुरानी व्यवस्था में किसानों की आय का दायरा सीमित था, अतः कृषि में लाभ कम हो रहा था। वे बिचौलियों के शोषण का शिकार भी होते थे। नए कृषि कानूनों से किसानों को अपनी आय बढ़ाने के लिए कई तरह के विकल्प प्रदान किए गए थे।

    देश का विपक्ष व कुछ अन्य ताक़तें कथित किसान आंदोलन का समर्थन कर सरकार पर निशाना साधने की कोशिश में लगा है।देश का आम किसान सब देख रहा है और वास्तविक मुद्दों पर आधारित आंदोलन तथा राजनीति प्रेरित आंदोलन का मतलब बखूबी समझता है। इस तरह के विपक्षी कुप्रयासों को जनता ने पहले भी चुनावों में आईना दिखाया है।

      किसान संगठन पीजेंट वेलफ़ेयर एसो. पंजाब के दो किसान संगठनों के "दिल्ली चलो" आंदोलन का समर्थन नहीं करता है। क्योंकि यह आंदोलन रणनीति से प्रेरित है।तथा ये संगठन व्यवस्था को बंधक बनाकर अपने माँगे मनवाना चाहते है।इसलिए हम देश के किसानों से भी अपील करते है कि इस तरह के आंदोलन में भाग नहीं लेना चाहिए

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