शुक्रवार, 23 फ़रवरी 2024

लोकसभा चुनाव 2024 : यूपी इन सीटों पर भाजपा का खेल बिगाड़ सकता है गठबंधन


लखनऊ। यूपी के लोकसभा के चुनावी रण में सपा-कांग्रेस का एक साथ रहना तय हो चुका है। सीटों के बंटवारे में कांग्रेस के खाते में वही सीटें गई हैं जिन पर उसका अपना प्रभाव कभी रहा करता था। यूपी की 80 लोकसभा सीटों के इतिहास पर नजर डाला जाए तो सपा-कांग्रेस गठबंधन का सीधा असर 25 सीटों पर सीधा दिखाई दे रहा है। इसमें सबसे अधिक 13 सीटें मुस्लिम बाहुल्य वाली हैं, लेकिन चौंकाने वाली बात तो यह है कि वर्ष 2019 के चुनाव में भाजपा इनमें से पांच सीटें जीतने में कामयाब रही थी। इन सीटों पर मुस्लिमों की आबादी 35 से लेकर 45 प्रतिशत तक बताई जा रही है।

एक समय था कि यूपी में कांग्रेस, सपा व बसपा का दबदबा हुआ करता था, लेकिन पिछले दो लोकसभा चुनावों में भाजपा ने इन सभी को पीछे छोड़ दिया। बात सिर्फ तीन लोकसभा चुनावों की करें तो भाजपा ने सभी पार्टियों को पीछे धकेला है। वर्ष 2009 के चुनाव में सपा ने 23 तो कांग्रेस ने 21 सीटें यूपी में जीती थीं। इन दोनों पार्टियों का वोट प्रतिशत भी भाजपा से कहीं अधिक था, लेकिन वर्ष 2014 और 2019 के चुनावों में इनका वोटिंग प्रतिशत काफी नीचे चला गया। वही 2024 के चुनाव में राम मंदिर के निर्माण के बाद गठबंधन में लगातार दरार पड़ती नजर आ रही है। जिसमें राष्ट्रीय लोकदल ने भाजपा के साथ गठबंधन के साथ और बहुजन समाज पार्टी ने अकेले लड़ने का मन बनाया हुआ है। ऐसे में अगर माना जाए तो उत्तर प्रदेश की 80 सीटों पर भारतीय जनता पार्टी का वर्चस्व लगभग 70 सीटों पर साफ दिखता नजर आ रहा है। वही राष्ट्रीय लोकदल गठबंधन के बाद भारतीय जनता पार्टी पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर, बागपत, सहारनपुर बिजनौर, नगीना एवं कैराना जहां जाट और गुर्जर सहित मुस्लिम बाहुल्य के साथ ठाकुर बाहुल्य क्षेत्र में भारतीय जनता पार्टी का वर्चस्व आज भी कायम है। वही दूसरी ओर हाल ही में हुए राष्ट्रीय लोकदल से गठबंधन के बाद 2022 के विधानसभा चुनाव में कई सीटों पर हार के बाद से गठबंधन के चलते कई सीटों पर भारतीय जनता पार्टी एवं राष्ट्रीय लोकदल पूरी तरह जीत के लिए पूरी तरह से तैयार है। 

यह माना जा रहा है कि लोकसभा चुनाव में सपा और कॉग्रेस के एक साथ आने से मुस्लिम वोटों का बंटवारा काफी हद तक रुकेगा। अब देखने वाला यह होगा कि बसपा कितने सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारती है, क्योंकि वह इनके साथ नहीं है और अपने दम पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर रखा है। बसपा के मुस्लिम दांव पर वोटों का बंटवारा रोकने के लिए सपा और कांग्रेस की रणनीति कितनी कारगर होती है यह तो समय बताएगा। बसपा मुस्लिम वोट बंटवारा कराने में सफल रही तो इसका सीधा नुकसान सपा-कांग्रेस गठबंधन पर पड़ेगा। जिसकी संभावना बहुत कम प्रतीत होती है।

वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा के साथ गठब्ंधन पर चुनाव लड़ी थी। इस चुनाव में मुस्लिम बाहुल्य 13 सीटों पर मुस्लिमों का वोट एकतरफा गठबंधन को गया था। इसका सीधा फायदा यह हुआ की मुस्लिम प्रभाव वाली 13 सीटों में आठ इस गठबंधन के पास गई। इसमें से पांच बसपा तो तीन सीट जीती थी।

सपा मैनपुरी, एटा, बदायूं, कन्नौज, रामपुर, मुरादाबाद व आजमगढ़। कांग्रेस रायबरेली, अमेठी, कानपुर, झांसी, बासगांव। इसके अलावा मुस्लिम बाहुल्य बिजनौर, अमरोहा, मुरादाबाद, रामपुर, मेरठ, मुजफ्फरनगर, कैराना, सहारनपुर, संभल, नगीना, बहराइच, बरेली व श्रावस्ती हैं।

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