बुधवार, 1 नवंबर 2023

भाजपा नहीं तो किसे वोट देगा जाट समाज!


मुजफ्फरनगर । जाट समुदाय को वर्ष 2014 में केंद्र की कांग्रेस सरकार द्वारा केन्द्रीय सेवाओं में दिए गए आरक्षण के सच को जानना चाहिए –अशोक बालियान,चेयरमैन,पीजेंट वेलफेयर एसोसिएशन

     केंद्र की कांग्रेस सरकार द्वारा वर्ष 2015 में जाट समुदाय को केन्द्रीय सेवाओं में आरक्षण दिया गया था इस आरक्षण को ओबीसी रिजर्वेशन रक्षा समिति ने सुप्रीमकोर्ट में चुनौती दी थी। इस याचिका में आरोप लगाया गया था कि चार मार्च 2014 की अधिूसचना तत्कालीन केंद्र सरकार ने लोकसभा चुनावों के लिए आदर्श आचार संहिता लागू होने से एक दिन पहले जारी की थी, ताकि तत्कालीन सत्तारूढ़ पार्टी को वोट जुटाने में मदद मिल सके।

   सुप्रीमकोर्ट ने वर्ष 2015 में जाट आरक्षण पर निर्णय देते हुए कहा था कि जाति एक महत्वपूर्ण कारक है, लेकिन आरक्षण के लिए यही एक आधार नहीं हो सकता है। सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक आधार भी जरूरी है। इसलिए बिना राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (एनसीबीसी) की रिपोर्ट के केंद्रीय नौकरियों और केंद्रीय शाक्षिक संस्थानों में जाटों को आरक्षण नहीं मिलेगा। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट यह भी कहा था कि इस फैसले का नौ राज्यों में जारी जाट आरक्षण पर कोई असर नहीं पड़ेगा।

   सुप्रीमकोर्ट ने राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (एनसीबीसी) के उस निष्कर्ष की अनदेखी करने के केंद्र के फैसले में खामी पाई थी, जिसमें कहा गया था कि जाट केंद्र की ओबीसी लिस्ट में शामिल होने के हकदार नहीं हैं, क्योंकि वे सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग नहीं हैं। सुप्रीमकोर्ट ने यह भी कहा था कि अतीत में अगर कोई गलती हुई है, तो उसके आधार पर और गलतियां करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।

   सुप्रीमकोर्ट ने अपने निर्णय में कहा था कि राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (एनसीबीसी) ने केंद्र सरकार को दिनांक 26-02-2014 को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी, जिसमें कहा गया था कि जाट समुदाय ने ओबीसी की केंद्रीय सूची में शामिल करने के लिए मानदंडों को पूरा नहीं किया है।  राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (एनसीबीसी) द्वारा दी गई रिपोर्ट को दरकिनार करने के लिए कुछ और की आवश्यकता होती है, जो न्यायिक रूप से इंद्रा साहनी केस और वैधानिक रूप से (एनसीबीसी अधिनियम) सामान्य रूप से केंद्र सरकार पर बाध्यकारी होती है।केंद्र सरकार ने उसका भी पालन नहीं किया था।  

       सुप्रीमकोर्ट ने अपने निर्णय में कहा था कि केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (एनसीबीसी) द्वारा दी गई रिपोर्ट को दरकिनार करते हुए दिनांक 02-03-2014 को हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में जाट समुदाय को उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश राज्यों और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली, राजस्थान के भरतपुर और धौलपुर जिलों के लिए पिछड़े वर्गों की केंद्रीय सूची में जाट समुदाय को ओबीसी की केंद्रीय सूची में शामिल करने का निर्णय लिया गया था और दिनांक 04-03-2014 को जाट समुदाय को ओबीसी की केंद्रीय सूची में शामिल करने के लिए अधिसूचना जारी की गई थी। जबकि यह क़ानूनीरूप से अनुचित था।    

    कुछ लोग सुप्रीमकोर्ट के इस फैसलें के लिए केंद्र की बीजेपी सरकार को जिम्मेदार ठहराने का आरोप बिना तथ्य बताये लगाते रहते है,जबकि  केंद्र की मोदी सरकार ने तो सुप्रीमकोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल करते हुए कहा था कि सुप्रीमकोर्ट जाट समुदाय को ओबीसी कोटे से बाहर किए जाने के अपने फैसले पर दोबारा विचार करे,लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने जाट आरक्षण पर केंद्र की पुनर्विचार याचिका भी खारिज कर दी थी। इस समय विपक्ष भी जाट आरक्षण के नाम पर राजनीति कर रहा है। और जाट समाज को बरगलाया जा रहा है। इससे हमारे जाट समुदाय को सावधान रहना होगा।   

    एक ओर जहां अब लोकसभा चुनाव 2024 को शुरू होने में काफी कम समय रह गया है, वहीँ जाट समाज के कुछ संगठन जाट समुदाय की आरक्षण की मांग को लेकर को लेकर सभाए कर रहे है और इस संगठन ने पश्चिमी यूपी में बीजेपी की घेराबंदी शुरू करने के लिए इन्होने मेरठ में एक सभा भी की है  उन्होंने कहा है कि कि जाटों को केंद्रीय सेवाओं में आरक्षण नहीं दिया गया तो बीजेपी का विरोध करेंगे। जाट समुदाय के नाम पर बने संगठन ने यह नहीं बता रहा कि जाट आने वाले लोकसभा चुनाव में बीजेपी को वोट नहीं देगा तो ये जरूर बताएं कि किसे वोट देंगे?

     जाट समुदाय वर्तमान में केंद्र की मोदी सरकार द्वारा दिए गए आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के आरक्षण का लाभ ले रहा है, जिसमें शिक्षण संस्थानों और सरकारी नौकरियों में 10 प्रतिशत का आरक्षण मिलता है। इस आरक्षण को 14 जनवरी 2019 लागू किया गया था और इस आरक्षण कोटा के अंदर ने अभियार्थी आते हैं, जो जनरल केटेगरी के हों और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग हो। इस कोटा के अंदर एससी, एसटी, ओबीसी वर्ग नहीं आते है। जनरल केटेगरी के वह लोग जिनकी सालाना आमदनी 8 लाख से कम है, उन्हें भी इस आरक्षण का लाभ मिलता है। अगर जाट समुदाय को पिछड़ा वर्ग का आरक्षण दिया जाता है, तो इन्हें फिर उसी श्रेणी में लाभ दिया जाएगा। 

    हमारा जाट समुदाय से कहना है कि उनकी जाट आरक्षण की मांग उचित ढंग से सही लोगों द्वारा उठायी जानी चाहिए और अनावश्यक बीजेपी का विरोध नहीं करना चाहिए, क्योकि जाट समुदाय को अधिकतर आरक्षण बीजेपी सरकार के समय ही मिला है। यूपी में जाटों को आरक्षण तब दिया, जब रामप्रकाश गुप्ता की अगुआई में बीजेपी की सरकार थी। राजस्थान में भी वसुंधराराजे सरकार ने जाट आरक्षण दिया था, जबकि वहां कांग्रेस ने इसका विरोध किया था। दिल्ली में जरुर शाली दीक्षित सरकार ने दिया था। समाजवादी पार्टी ने हमेशा विरोध किया है। 

    इन संगठनों के अनावश्यक विरोध की घोषणा से समाज को नुकसान होता है जैसे वर्ष 2014 में हरियाणा में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने जाट समुदाय को 27 टिकट दिए गए थे, लेकिन जाट आरक्षण आंदोलन  के बाद अगले विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने जाट समुदाय को 17 टिकट दिए गए थे। इसलिए अनावश्यक विरोध जाट बनाम नान जाट वाली पॉलिटिक्स की प्रयोगशाला बन जाता है। जाट समुदाय को जातिवाद, परिवार और क्षेत्रवाद की राजनीति से बहार आने से अधिक लाभ होगा और सत्ता में भी उसकी हिस्सेदारी बढ़ेगी। इस समय मोदी सरकार के केंद्रीय मंत्रिमंडल में जाट समुदाय से डॉ संजीव बालियान व कैलाश चौधरी दो मंत्री हैं। यदि हम इतिहास को देखें तो जाट समुदाय के बीच शुरू से ही हिंदुत्व व राष्ट्रवाद की भावना रही है।

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