जनपद मुज़फ्फरनगर का धर्मिक स्थल शुक्रताल महाभारत काल से एतिहासिक व धार्मिक स्थल है-अशोक बालियान,चेयरमैन,पीजेंट वेलफेयर एसोसिएशन
जनपद मुज़फ्फरनगर के धर्मिक स्थल शुक्रताल में 24 से 27 नवंबर तक आयोजित होने वाले कार्तिक गंगा स्नान मेला चल रहा है। हमने अपनी एतिहासिक खोज के अभियान में महाराजा सूरजमल संस्था दिल्ली के रिसर्च के निदेशक राजेन्द्र कुमार के साथ जनपद मुज़फ्फरनगर के एतिहासिक व धार्मिक स्थल शुक्रताल के इतिहास को खोजने का प्रयास किया है।The Calcutta Review 1877 Vol 64 के पेज 78 पर भी यह अंकित है कि इस पवित्र स्थान पर शुकदेव जी महाराज ने अक्षय वट के नीचे बैठकर लगभग 5000 साल पहले महाराज परीक्षित को श्रीमद भागवत की कथा सुनाई थी।
एक अंग्रेज लेखक Rennell की पुस्तक ‘Description Historique ET Geographique DEL’INDE 1786’ के पेज 142 पर अंकित है कि शुक्रताल नानक स्थान का यह नाम गुरु शुक्राचार्य जो ऋषि भुगु के पुत्र थे,के नाम पर पड़ा था। शुक्राचार्य के संबंध में काशी खंड महाभारत, पुराण आदि ग्रंथों में अनेक कथाएं वर्णित है। महर्षि भृगु के पुत्र शुक्राचार्य तथा उनके पौत्र और्व से ऐतिहासिक संबंध के बारे में 'हिस्ट्री ऑफ पर्शिया' में भी उल्लेख मिलता है, जिसके लेखक साइक्स थे।
जनपद मुज़फ्फरनगर का धर्मिक स्थल शुक्रताल जिला मुख्यालय मुज़फ्फरनगर शहर से 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। एक किद्वंती के अनुसारलगभग पांच हजार वर्ष से पूर्व संत शुकदेव जी महाराज ने अर्जुन के पोत्र राजा परीक्षित को श्रीमद् भगवद पुराणों का उपदेश व जीवन-मृत्यु के मोह से मुक्त करते हुए मोक्ष की प्राप्ति का ज्ञान दिया था। इस स्थान पर वट वृक्ष के साथ शुकदेव जी मंदिर का निर्माण के लिए शिक्षाऋषि वीतराग स्वामी कल्याणदेव जी महाराज ने 18 नवंबर 1945 को अलवर नरेश सर तेज बहादुर से शुकदेव मंदिर का भूमि पूजन कराया था। इस समय शुकदेव जी मंदिर के संचालक ब्रहमचारी ओमानंद जी महाराज है।
शुक्रताल में शुकदेव जी मंदिर परिसर से थोड़ी दूर पर ही एकादश रूद्र शिव मंदिर स्थित है जिसका निर्माण संवत 1901 (सन 1844) में हुआ था। अभी भी मंदिर परिसर में उक्त समय की मूर्तियाँ, भित्तिचित्र तथा संरचना विद्यमान है। मन्दिर में लगे पत्थर के अनुसार लाला तुलसीराम जी के पूर्वज रोशनलाल ने एकादश रूद्र शिव मंदिर का निर्माण कराया था। मंदिर में शिव परिवार श्री गणेश जी, श्री कार्तिकेय, मां पार्वती के साथ नंदी पर सवार शिव तथा श्री लक्ष्मी जी की मनमोहक मूर्तियां विराजमान हैं।
इस मंदिर की भीतरी दीवारों पर छत तक अनोखी तस्वीरें बनी हैं। वनस्पति रंगों से सदियों पूर्व बनी आज भी अति सुंदर नजर आती है। छत के गोले गुंबद में श्रीकृष्ण गोपियों के संग रासलीला में लत हैं, तो दीवारों पर नरसिंह भगवान हिरण्यकश्यप, भक्त प्रहलाद महाशक्ति, शंकर,पार्वती, नंदी, कश्यप मुनि, भस्मासुर, विष्णु भगवान, मां पृथ्वी, यशोदा, सूर्य व संजीवनी बूटी ले जाते महाबली हनुमान जी की तस्वीर बनी हैं। प्रांगण में ही शिव के वाहन संगमरमर के नंदी विराजमान हैं।
शुक्रताल में सन 1987 में स्थापित विश्व की सबसे बड़ी हनुमान जी की मूर्ति स्थापित होने का भी रिकॉर्ड है, जो चरण से मुकुट तक लगभग 65 फीट 10 इंच तथा सतह से 77 फीट है।हनुमत धाम के संचालक ब्रहमचारी केशवानंद जी महाराज है। यहाँ दूसरे मन्दिरों में श्री शिव भगवन की 108 फ़ीट ऊंची तथा माता दुर्गा की 80 फ़ीट ऊंची प्रतिमा भी हैं।
उत्तर भारत में भार्गव वंश में महिर्ष भृगु से स्वामी शंकराचार्य जी तक धर्म के प्रचार और प्रसार की परम्परा को अठारवी सदी में एक महान सन्त बाबा चरणदास बाबा एक योग्य गुरू की तलाश में घर से निकल पड़े थे और घूमते हुए दो वर्ष बाद सन 1721 में वह मुजफ्फर नगर के शुक्रताल नामक स्थान पर जा पहुंचे थे।
भारत में मुगल काल अपने अंतिम दौर में चल रहा था। महादजी शिंदे के पिताश्री राणोजी राव शिंदे ग्वालियर के सिंधिया राजवंश के संस्थापक थे। महादजी शिंदे ने सन 1771 में दिल्ली की तरफ कूच किया था और वहाँ भगवा लहराया था।
हमने शुक्रताल से कुछ दुरी पर रोहिल्ला शासक नजीबुद्दौलाके किले के अवशेष भी देखे है। अफ़ग़ान रूहेला सरदार नजीबुदौला ने सन 1752 के लगभग शुक्रताल में गंगा के किनारे उचे टीले पर इस किले का निर्माण भी कराया था। यह किला लखौरी इंटों व पत्थरों से बना था। इस किले से कुछ दुरी पर एक कुआं भी उसी समय का बना हुआ हैं और इस कुएं की खासियत यह थी कि इनसे किले या दीवारों के अंदर से दीवारों के सहारे ऐसे पानी खींचा जा सकता था कि बाहरी आदमी को पता न चल सके। हमें इस किलें में सोने-चांदी के सिक्के भी मिलने की जानकारी मिली है।
शुक्रताल में स्थित इस किले को सन 1759 में मराठा सरदार दत्ता जी सिंधिया ने भी घेर लिया था। और निकट के एक गावं मीरपुर में पानीपत के सन 1761 के युद्ध से पहले तक घेरा डाले रखा था। इसी बीच दोनों तरफ से खुनी युद्ध भी हुए थे।लेकिन उस समय मरतों को पानीपत युद्ध में जाना पद गया था और यह युद्ध निर्णायक नहीं हुआ था। अफगान रूहेला सरदार की फ़ौज व मैराथन की फ़ौज के बीच युद्ध में शहीद हुए कुछ मराठा सैनिकों की कुछ समाधियाँ यहाँ के पास के गाँव बेल्डा में बनी हुई थी। यहाँ मराठा सरदार महादजी सिंधिया ने दत्ता जी सिंधिया के शिविर स्थल पर उनकी स्मृति में एक शिव मन्दिर का निर्माण कराया था
भरतपुर के जाट राजा सूरजमल के पुत्र महाराजा जवाह सिंह ने सिखों के साथ मिलकर अफगान रूहेला सरदार नजीबुद्दौला के पुत्र व उतराधिकारी जाब्ता खान का दमन किया था। जाब्ता खान की मृत्यु के बाद मराठों ने उसके पुत्र गुलाम कादिर का सन 1788 में दमन किया था।इसके बाद जनपद मुजफ्फरनगर पूर्णतया मराठों के आधीन आ गया था। और सन 1804 में ब्रिटिश के आधीन आ गया था। इस प्रकार शुक्रताल का एक लम्बा इतिहास है। हमने ज़िला पंचायत के अध्यक्ष डॉ बीरपाल निर्वाल से अनुरोध किया है कि यहाँ के इतिहास की एक इतिहास पट्टिका उचित स्थान पर लगनी चाहिए।हमारी खोज जारी है..
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