मुजफ्फरनगर । एनसीआर में पेपर मिलें संघर्ष कर रही हैं लेकिन भविष्य को लेकर आश्वस्त हैं।
वैश्विक भरमार के कारण, एनसीआर में पेपर मिलों को कठिन समय का सामना करना पड़ रहा है। कच्चे माल की अप्रत्याशित लागत और तैयार उत्पाद की घटती कीमत उनके अस्तित्व का एक बड़ा मुद्दा बन गई है। इस अवसर पर इंडियन पल्प एंड पेपर टेक्निकल एसोसिएशन (आईपीपीटीए) द्वारा 30 और 31 अक्टूबर को होटल किंग्स विला -7 में आयोजित दो दिवसीय सम्मेलन के कार्यक्रम अध्यक्ष श्री पंकज अग्रवाल ने कहा कि एनसीआर में मिलें बंदरगाह से दूर स्थित हैं और इसलिए उन्हें आयातित रद्दी कागज के एवज में भूमि के भाड़े की अतिरिक्त लागत वहन करनी पड़ती है, जिसके परिणामस्वरूप वे अलाभकारी हो जाते हैं। व्यवसाय अलाभकारी होता जा रहा है।
आईपीपीटीए के अध्यक्ष श्री गणेश भडती ने ऐसी तकनीक पर जोर दिया जो लागत में कटौती और दक्षता में सुधार करने में मदद कर सकती है। इस अवसर पर खन्ना पेपर के सीओओ और मुख्य वक्ता श्री एसवीआर कृष्णन ने सुझाव दिया कि हमें किसी समस्या का अध्ययन करना चाहिए, उसकी निगरानी करनी चाहिए, डेटा का अध्ययन करना चाहिए, उसकी पहचान करनी चाहिए और फिर समाधान पर काम करना चाहिए।
कुआंटम पेपर - सैला खुर्द के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक श्री पवन खेतान ने सभा को बताया कि उद्योग ने प्राकृतिक संसाधनों की खपत को कम करने के लिए पिछले कुछ वर्षों में जबरदस्त काम किया है। आईपीपीटीए के मानद महासचिव श्री एम के गोयल ने इस बात पर प्रकाश डाला कि 82% से अधिक कागज का निर्माण पुनर्नवीनीकरण कागज के उपयोग से किया जा रहा है और शेष कागज कृषि अवशेषों और सामाजिक खेती से प्राप्त लकड़ी के उपयोग से बनाया जाता है। पृथ्वी के हरित आवरण में पेपर मिल का शुद्ध योगदान है, लेकिन यह स्थिति के कारण पैदा हुई खराब धारणा का शिकार है।
सेमिनार में पूरे भारत से 450 से अधिक विशेषज्ञ, शिक्षाविद और अनुसंधान विद्वान और प्रौद्योगिकी प्रदाता भाग ले रहे हैं।
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