भारत में जाति व्यवस्था सनातन या हिंदू धर्म द्वारा संरचित नहीं है-अशोक बालियान, चेयरमैन,पीजेंट वेलफेयर एसोसिएशन
तमिलनाडु के सीएम के बेटे और राज्य के खेल मंत्री उदयनिधि स्टालिन के सनातन धर्म को लेकर दिए गए बयान के बाद अब कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के बेटे और कर्नाटक सरकार में मिनिस्टर प्रियांक खरगे ने खेल मंत्री उदयनिधि स्टालिन के बयान का समर्थन किया है। इस तरह के बयान भारत की सभ्यता विरुद्ध है और सनातन धर्म को बदनाम करने वाले है। इनको पता होना चाहिए कि सनातन धर्म के शास्त्र, पुराणों या वेद में कहीं भी जातियों का उल्लेख नहीं है।
सनातन या हिंदू-धर्म में वेदों और उपनिषदों की रचना के समय हिंदू-धर्म तो विद्यमान था, पर जाति व्यवस्था नहीं थी। यह "मिथक" कि जाति व्यवस्था सनातन धर्म या हिंदू धर्म के लिए अद्वितीय थी, इस धारणा को ‘सनातन या हिंदू धर्म के बाहर’ के तत्वों द्वारा इससे वंचित लोगों को धर्मांतरित करने के "शरारती इरादे" से प्रचारित किया गया था। धर्मांतरण से जाति-आधारित मुद्दों का समाधान नहीं होता या सामाजिक भेदभाव समाप्त नहीं होता, बल्कि "स्वयं-सहायता" से समाधान होता है।
भारतीय सभ्यता व संस्कृति का स्रोत वेदों को ही माना गया है। वेदों की रचना किसी एक युग विशेष में अथवा किसी व्यक्ति विशेष के द्वारा नहीं की गयी थी। इस प्रक्रिया मे हजारों वर्ष लगे हैं। और वेदों में जाति प्रथा का अस्तित्व नहीं है।
भारत में जाति व्यवस्था वास्तव में "व्यवसाय पर आधारित वर्ग प्रणाली" और "गुण" या योग्यता थी। जाति व्यवस्था और सनातन या हिंदू धर्म के बीच कोई संबंध नहीं था। सनातन या हिंदू धर्म "गतिशील और उदार" है और इसलिए यह किसी एक पाठ या स्रोत से बंधा नहीं है। श्री कृष्ण गीता में साफ साफ कहते है कि ‘समत्वं योग उच्यते’ अर्थात सभी के साथ समानता भरा व्यवहार करो
अपने परिवर्तनशील चरित्र के अनुरूप और सार्वभौमिक ग्रहणशीलता, हिंदुओं की धार्मिक आस्था का केंद्र है और इसे ही बाद में ब्राह्मणवाद कहा जाने लगा था। जबकि ब्राह्मणवाद कोई वाद नहीं है। हिंदू धर्म में नस्ल, बोली और पंथ में विविधता के बाबजूद सभी देवी-देवता समान रूप से पूजनीय हैं।
अंग्रेज लेखक रिस्ले की पुस्तक Tribes and Castes by Risley 1892 के अनुसार जाति को परिवारों या समूहों के संग्रह के रूप में परिभाषित किया है। किसी पौराणिक पूर्वज से मनुष्य दावा करते हुए, उसी वंशानुगत व्यवसाय का पालन करें और उन लोगों द्वारा माना जाता है, वही कालान्तर में जाति के रूप में पहचान बन गयी थी। भारत में समय के साथ एक कबीले या एक समहू को एक गोत्र के रूप में भी बोला जाने लगा था और उस कबीले या समहू की पहचान जाति से भी होने लगी थी, लेकिन जातियों का सनातन धर्म से कोई सम्बन्ध नहीं है।
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