उत्तरप्रदेश में सपा व राष्ट्रीय लोकदल गठबंधन से जाट समुदाय को नुकसान होता है- अशोक बालियान, चेयरमैन, पीजेंट एसोसिएशन
राजनीति के क्षेत्र में कठिन परिश्रम और निस्वार्थ सेवा एक व्यक्ति को अच्छा नेता बनाता है। यह सेवा भाव समाज में एक सकारात्मक परिवर्तन की दिशा में व्यक्ति को प्रेरित करता है और उन्हें एक समाजसेवी नेता के रूप में स्थापित करता है। इससे उसके समुदाय व उसके क्षेत्र की जनता को लाभ होता है। आज इस पूरे क्षेत्र में जनपद मुज़फ्फरनगर से सांसद व केन्द्रीय मंत्री डॉ संजीव बालियान के प्रयास से विकास के बड़े-बड़े कार्य हो रहे है और अनेकों हाई वे निकल रहे है।उनके पास विकास का एक बड़ा विजन है।और उनमें अनेकों संभावनायें है।
उत्तरप्रदेश में सपा व राष्ट्रीय लोकदल गठबंधन से जाट समुदाय को हमेशा नुकसान हुआ है, उनका विधानसभा व लोकसभा में प्रतिनिधित्व घटा है, जब ये दल मिलकर सत्ता में रहे, तब राष्ट्रीय लोकदल के प्रभाव वाले क्षेत्र में विकास के कार्य नहीं हुए है, लेकिन जयंत चौधरी को व्यक्तिगत लाभ हुआ है। वह सपा की वोटों से राज्यसभा पहुच गए है। चौधरी अजित सिंह ने 20 जुलाई 2016 को आगरा में एक बयान देते हुए कहा था कि उत्तरप्रदेश की अखिलेश यादव सरकार में नौकरियों के रेट तय हैं। बिना पैसों के कोई काम नहीं हो रहा है। अगर किसी को रोजगार मिला है तो सिर्फ मुलायम परिवार को मिला है। आम युवा ठोकरें खा रहा है। उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार सूबे में बढ़ रहे अपराध पर लगाम लगाने में नाकाम रही है।
लेकिन आज उन्ही की पार्टी राष्ट्रीय लोकदल उत्तरप्रदेश में पिछले विधान सभा चुनाव के समय से सपा के साथ गठबंधन में है और अब राष्ट्रीय लोकदल वर्ष 2024 लोकसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन के साथ चुनाव लड़ेंगे। अभी हाल में ही नॉएडा में एक बयान देते हुए जयंत चौधरी ने कहा कि राष्ट्रीय लोकदल स्व. चौधरी चरण सिंह जी के विचारों और चौधरी अजीत सिंह के बताए हुए रास्ते पर चल रही है तो फिर जो बयान चौधरी अजित सिंह ने 20 जुलाई 2016 को आगरा में दिया था उसका क्या होगा, वैसे राजनीती में दुश्मन व दोस्त बदलते रहते है।
उत्तरप्रदेश में वर्ष 2003 में जब यूपी में बीजेपी के गठबंधन से मायावती की सरकार चल रही थी, तब चौधरी अजित सिंह ने अपने 14 विधायकों का समर्थन मायावती सरकार से वापस लेकर उसके गिरने का रास्ता तैयार किया था और मायावती सरकार गिरने के बाद चौधरी अजित सिंह ने मुलायम सिंह यादव को समर्थन दे दिया था। इसी दौरान वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव में सपा के साथ मिलकर किस्मत आजमाई, जो सपा 35 सीटें जीतकर फायदेमंद रही, लेकिन राष्ट्रीय लोकदल केवल तीन सीटें जीतकर नुकसान में रही थी।
इसके बाद चौधरी अजित सिंह ने मुलायम सरकार से अपना समर्थन वापिस ले लिया था और वर्ष 2007 के विधानसभा चुनाव में सपा और आरएलडी अलग-अलग चुनाव लड़ीं थी। वर्ष 2008 में जब अमेरिका के साथ परमाणु समझौते को लेकर वाममोर्चा की समर्थन वापसी के बाद यूपीए सरकार संसद में अविश्वास प्रस्ताव का सामना कर रही थी, तब चौधरी अजित सिंह ने कांग्रेस खिलाफ वोट दिया था। इसके बाद वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) ने बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था, और इसका फायदा बीजेपी से ज्यादा राष्ट्रीय लोकदल को मिला था। पश्चिमी यूपी में आरएलडी ने पांच सीटें जीती थी।
इसके बाद वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और आरएलडी मिलकर मैदान में उतरी, लेकिन कोई बड़ा सियासी करिश्मा नहीं दिखा सकी और इस चुनाव में आरएलडी 46 सीटों पर लड़ी थी, लेकिन जीत केवल 9 सीटों पर मिली थी। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में आरएलडी और कांग्रेस की दोस्ती बरकरार रही और इस लोकसभा चुनाव में चौधरी अजित सिंह और उनके पुत्र जयंत चौधरी दोनों ही हार गए थे। इस चुनाव में उत्तरप्रदेश में कांग्रेस महज दो सीटें जीत पाई थी, जबकि आरएलडी अपना खाता ही नहीं खोल सकी थी। इसके बाद वर्ष 2017 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और सपा में दोस्ती हो जाने से आरएलडी हाशिए पर पहुंच गई थी।
इसके बाद वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में आरएलडी बसपा और सपा के साथ हाथ मिलाकर चुनावी मैदान में उतरी थी। सपा-बसपा ने आरएलडी को तीन सीटें दी थी, जिनमें एक भी सीट वो नहीं जीत सकी थी। इतना ही नहीं चौधरी अजित सिंह और जयंत चौधरी दोनों चुनाव हार गए थे, जबकि बसपा को 10 और सपा को 5 सीटें मिली थी। इस गठबंधन का फायदा बसपा को मिली।
उत्तरप्रदेश में वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव के बाद सीट बंटवारे को लेकर यह बात सामने आई थी कि यदि राष्ट्रीय लोकदल को सपा के साथ गठ्बन्धन में 10 सीटें भी और मिल गई होती, तो राष्ट्रीय लोकदल की चुनाव आयोग में मान्यता बरकरार रहती। इस गठबंधन में रालोद को सपा ने 33 सीटें दी थी, इनमें से रालोद ने केवल 8 सीटें जीती थी।
इस चुनाव में जयंत चौधरी ने जाटों को मुजफ्फरनगर दंगों का घाव देने पार्टी सपा से गठबंधन किया था। मुजफ्फरनगर दंगों के दौरान जाटों भेदभाव पूर्व कार्यवाही हुई थी। इस भेदभाव पूर्ण एकतरफा कार्यवाही की जिम्मेदारी सपा सरकार ही थी। मुजफ्फरनगर जिले के जानसठ स्थित एक मदरसे का संचालक मौलाना नजीर, जिस पर दंगे भड़काने के आरोप में एफआईआर दर्ज है, मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का सरकारी मेहमान रहा था। उस समय समाजवादी सरकार मुज़फ्फरनगर निरंतर एकपक्षीय कार्रवाई कर हालात बिगाड़ने पर आमादा थी। मुजफ्फरनगर दंगों के दौरान जब सोनिया गाँधी व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह मुजफ्फरनगर के दौरे पर आये थे, तो वे केवल मुस्लिम केम्पों में ही गए थे, जबकि पास में ही हिन्दू केम्प भी थे।
राजनीति में अपने आप को जनता के बीच खरा सबित करना बहुत कठिन है। आजादी के बाद वंशवाद को बढ़ाने का आरोप सबसे पहले नेहरू गांधी परिवार पर लगा, क्योंकि इसके तीन सदस्य, जवाहर लाल नेहरू, बेटी इंदिरा गांधी और इंदिरा के बेटे राजीव गांधी, देश के प्रधानमंत्री रह चुके हैं। आज जब राजीव के बेटे राहुल गांधी, कांग्रेस की इस परंपरा को आगे बढ़ाने की कोशिश में जी जान से जुटे हैं, वहीं बहन प्रियंका वाड्रा भाई का साथ देने मैदान में कूद पड़ी हैं।
देश के प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू के बाद जम्मू और कश्मीर के दिवंगत मुख्यमंत्री शेख अब्दुल्लाह के परिवार का नाम भी वंशवाद को लेकर बहुत आगे आता है. यहां उनके बेटे फारुख अब्दुल्लाह और पोते ओमर दोनों राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। उसी तरह जैसे पीपुल्स डेमोक्रैटिक पार्टी के मुफ्ती मुहम्मद सईद और उनकी बेटी महबूबा मुफ्ती वंशवाद को आगे बाधा रही है। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के मुलायम सिंह यादव के बेटे अखिलेश यादव व चौधरी अजित सिंह के बेटे जयंत चौधरी भी इसी वंशवाद के उदाहरण हैं। वंशवाद को लेकर अगर यूपी में मुलायम और अखिलेश आगे रहे, तो जाहिर था की बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव पीछे नहीं रह सकते थे।
हमारी राय में राजनीति में वंशवाद के बजाए योग्य नए चेहरे को भी समर्थन मिलना चाहिए और इसके लिए हमें निर्णायक मतदाता वर्ग विकसित करना होगा। राजनीति में छोटे क्षेत्रीय दलों की भूमिका भी समाप्त होनी चाहिए, क्योकि इनका कोई राष्ट्रीय एजेंडा नहीं होता है। इस वक़्त भाजपा में हमारे क्षेत्र से सांसद व केन्द्रीय पशुपालन राज्य मंत्री डॉ संजीव बालियान एक चमकते युवा नेता हैं, इसलिए निःसंदेह, उनमें अपार संभावनाएं हैं।
शेख अब्दुल्ला बेटे फारुख और पोते ओमर दोनों राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। उसी तरह जैसे पीपुल्स डेमोक्रैटिक पार्टी के मुफ्ती मुहम्मद सईद और उनकी बेटी महबूबा मुफ्ती वंशवाद को आगे बाधा रही है। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के मुलायम सिंह यादव के बेटे अखिलेश यादव व चौधरी अजित सिंह के बेटे जयंत चौधरी भी इसी वंशवाद के उदाहरण हैं। वंशवाद को लेकर अगर यूपी में मुलायम और अखिलेश आगे रहे, तो जाहिर था की बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव पीछे नहीं रह सकते थे।
हमारी राय में राजनीति में वंशवाद के बजाए योग्य नए चेहरे को भी समर्थन मिलना चाहिए और इसके लिए हमें निर्णायक मतदाता वर्ग विकसित करना होगा। राजनीति में छोटे क्षेत्रीय दलों की भूमिका भी समाप्त होनी चाहिए, क्योकि इनका कोई राष्ट्रीय एजेंडा नहीं होता है। इस वक़्त भाजपा में हमारे क्षेत्र से सांसद व केन्द्रीय पशुपालन राज्य मंत्री डॉ संजीव बालियान एक चमकते युवा नेता हैं, इसलिए निःसंदेह, उनमें अपार संभावनाएं हैं।
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