गुरुवार, 30 मार्च 2023

हत्या के मामले में दस साल की सजा पर स्टे के चलते संसद सदस्यता बहाल


नई दिल्ली । राकांपा नेता मोहम्मद फैजल की लोकसभा सदस्यता फिर बहाल कर दी गई है। लोकसभा सचिवालय ने नोटिफिकेशन जारी कर इस बात की जानकारी दी। इसी के साथ फैजल फिर से लक्षद्वीप से सांसद हैं। गौरतलब है कि इसी मामले में सुप्रीम कोर्ट में भी फैजल ने याचिका दायर की थी, जिस पर सुनवाई जारी है। 

कावरत्ती की एक अदालत ने एनसीपी सांसद मोहम्मद फैजल को हत्या के एक मामले में दोषी ठहराया था और उन्हें 10 साल की सजा सुनाई थी। जनप्रतिनिधि कानून के तहत 2 साल या उससे ज्यादा की सजा होने पर संसद सदस्य या विधानसभा सदस्य की सदस्यता रद्द हो जाती है। ऐसे में कानून के तहत मोहम्मद फैजल की संसद सदस्यता रद्द हो गई। 11 जनवरी 2023 को अदालत ने मोहम्मद फैजल को हत्या का दोषी ठहराते हुए सजा सुनाई और 13 जनवरी को लोकसभा सचिवालय ने नोटिफिकेशन जारी कर उनके संसद सदस्यता के लिए अयोग्य घोषित कर दिया। 

वहीं स्थानीय अदालत के फैसले के खिलाफ मोहम्मद फैजल ने केरल हाईकोर्ट में अपील दायर की, जहां से 25 जनवरी को उनकी सजा पर स्टे लग गया। इसके बाद मोहम्मद फैजल ने लोकसभा सचिवालय से अपनी संसद सदस्यता बहाल करने की मांग की लेकिन कई बार कहने के बावजूद अभी तक मोहम्मद फैजल की संसद सदस्यता बहाल नहीं की गई है।  

दोषसिद्धि, सजा के निलंबन पर सांसद-विधायकों के लिए अलग मानदंड नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को एनसीपी नेता व लक्षद्वीप सांसद मोहम्मद फैजल की याचिका का निपटारा करते हुए कहा कि एक आपराधिक मामले में दोषसिद्धि और सजा के निलंबन पर विधायक और सांसदों के लिए अलग मानदंड नहीं हो सकता। जस्टिस केएम जोसफ और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने कहा कि अदालत के समक्ष पेश सभी तथ्यों के आधार पर जब प्रथम दृष्टया यह राय होती है कि यह दोषमुक्ति का मामला है, तभी दोषसिद्धि और सजा का निलंबन किया जा सकता है।  

फैजल के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने दलील रखी थी कि केरल हाईकोर्ट ने फैजल की दोषसिद्धि व सजा पर रोक लगाते वक्त यह सोचा कि वह एक निर्वाचित प्रतिनिधि हैं। अगर उनकी दोषसिद्धि और सजा पर रोक नहीं लगाई तो यह उनकी अयोग्यता का कारण बनेगा और बाद में चुनाव कराने की जरूरत होगी। पीठ ने इस पर कहा कि सांसद और विधायकों की दोषसिद्धि व सजा के निलंबन के लिए अलग मानदंड नहीं हो सकते। पीठ ने कहा, यह असाधारण परिस्थितियों में होना चाहिए जब दोषसिद्धि पर रोक लगाने की जरूरत हो। यह एक मानक नहीं हो सकता।

 जस्टिस जोसफ ने सिंघवी को बताया कि पीड़ित के मस्तिष्क समेत लगभग 16 चोटें थीं और स्थानीय डॉक्टर का बयान है कि अगर उसे समय पर इलाज नहीं मिला होता, तो उसकी मौत हो जाती। एक बयान यह भी है कि पीड़ित को एयरलिफ्ट कर अस्पताल के आईसीयू में रखा गया, जहां उसे दो सप्ताह तक इलाज कराना पड़ा और हाईकोर्ट कहता है कि यह साधारण चोट का मामला है। पीठ ने कहा, सैद्धांतिक रूप में यह कार्य और मंशा है न कि परिणाम, जो मायने रखता है।

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