मुजफ्फरनगर । संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी सहित अपनी विभिन्न मांगों को लेकर मार्च में दिल्ली में फिर से प्रदर्शन करने पर विचार कर रहा है। विभिन्न किसान यूनियनों की प्रतिनिधि संस्था एसकेएम के नेता दर्शन पाल ने हरियाणा के जींद में आयोजित किसान पंचायत में यह ऐलान किया है। कुछ समय पहले एक खबर आई थी कि संयुक्त किसान मोर्चा का पूर्व में दिल्ली की सीमाओं पर चला आंदोलन मोदी सरकार को उखाड़ने के लिए था।
मोदी सरकार द्वारा किसान हित में कृषि सुधार के लिए बनाए गए कृषि कानूनों के विरोध में किसानों का दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन जैसे-जैसे आगे बढ़ रहा था, वैसे-वैसे प्रदर्शन का मकसद भी स्पष्ट होता जा रहा था। प्रदर्शन की शुरुआत किसान आंदोलन के रूप में हुई थी, लेकिन कुछ समय बाद यह आंदोलन अपने मार्ग से भटक चुका था। यह किसान आंदोलन न होकर सियासी और देश विरोधी ताकतों के एजेंडे को लागू करने वाला आंदोलन बन गया था।
इस आंदोलन के एक प्रमुख नेता दर्शन पाल कथित तौर पर पीपुल्स डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ़ इंडिया (PDFI) के संस्थापक सदस्य भी हैं। अन्य सदस्यों में वरवरा राव, कल्याण राव, मेधा पाटकर, नंदिता हक्सर, एसएआर गिलानी और बीडी सरमा थे। पीडीएफआई (PDFI) माओवादियों द्वारा अपनी स्थिति को मजबूत और विस्तार करने के लिए गठित किए गए टैक्टिकल यूनाइटेड फ्रंट (टीयूएफ) का एक हिस्सा है। इस आंदोलन के एक अन्य नेता सुरजीत सिंह फूल के विरुद्ध पंजाब सरकार ने वर्ष 2009 में इन पर यूएपीए के तहत मामला दर्ज किया था क्योंकि इनके संबंध कई नक्सलियों से बताए गए थे।
संयुक्त किसान मोर्चा के प्रमुख नेता योगेंद्र यादव ने अपने फेसबुक पेज पर दिल्ली दंगों के आरोपितों में से एक उमर खालिद को जन्मदिन की बधाई देते हुए अपने पेज पर पोस्ट करते हुए सवाल उठाया था कि तीन सौ दिन बीत जाने के बाद भी उसे जमानत नहीं दी जा रही है। किसान आंदोलन के दौरान पंजाब के किसान नेता रुलदू सिंह मानसा खालिस्तान समर्थकों की आलोचना के कारण निलंबित किए गए थे।
दिल्ली की सीमाओं पर किसान आंदोलन खत्म होने के बाद किसान आंदोलन की अगुआई करने वाले संयुक्त किसान मोर्चा का हिस्सा रहे 32 में से 22 किसान संगठनों ने पंजाब में संयुक्त समाज मोर्चा के नाम से राजनीतिक दल का गठन किया था।
किसान आंदोलन के समय ही अखिल भारतीय स्वामीनाथन संघर्ष समिति के प्रदेश अध्यक्ष विकाल पचर ने संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) की पोल खोलते हुए कहा था कि यह मोर्चा 4 लोगों की निजी कंपनी बन गया है, आंदोलन के नाम पर दिल्ली की सीमाओं पर किसान जमे हुए हैं। इनमें पंजाब के किसानों की संख्या सबसे ज्यादा है। इस आंदोलन को इस तरह पेश ऐसे किया जा रहा है कि किसान अपनी गाढ़ी कमाई के बल पर ही आंदोलन का खर्च उठा रहे हैं। लेकिन हकीकत इससे कहीं अलग हैं। सच्चाई यह है कि मोदी सरकार के खिलाफ माहौल बनाने के लिए इन किसान संगठनों को विदेशों से जबरदस्त फंडिंग हो रही हैं। इससे पहले भी किसान आंदोलन को पीछे से खालिस्तान, इस्लामी कट्टरपंथी और वामपंथी ताकतों द्वारा फंडिंग किए जाने के आरोप लग चुके थे।
इस आंदोलन को जिंदा रखने के लिए बेतहाशा पैसा खर्च किया जा रहा था। इसके लिए विदेशों से फंडिंग के साथ ही राजनीतिक हित साधने वाली पार्टियों से भी इनको आर्थिक मदद मिल रही थी।
26 जनवरी के मौके पर नए कृषि कानून के विरोध में आंदोलन कर रहे कुछ किसानों ने दिल्ली में जमकर उपद्रव मचाया था। किसानों ने पुलिस द्वारा लगाए गए बैरिकेड्स को तोड़ दिये थे। आईटीओ और लालकिले का पास भी किसानों ने जमकर उत्पात मचाया था। सोशल मीडिया पर कुछ वीडियो वायरल हुए थे, जो दुनिया भर में भारत की बदनामी का सबब बने थे।अब फिर से देश व सरकार को अस्थिर करने वाली ताकतों के साथ मिलकर संयुक्त किसान मोर्चा का किसान आंदोलन उसी राह की तरफ़ जाने का प्रयास कर रहा है।
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