नई दिल्ली। अमेरिका के कैलिफोर्निया स्थित लॉरेंस लिवरमोर नेशनल लैबोरेटरी की नेशनल इग्निशन फैसिलिटी (NIF) में 5 दिसंबर की रात पहली बार फ्यूजन का ऐसा प्रयोग किया गया जिसमें ‘नेट एनर्जी गेन’ हुआ। अर्थात फ्यूजन कराने के लिए जितनी ऊर्जा लगाई गई, फ्यूजन के बाद उससे अधिक ऊर्जा मिली। इस प्रक्रिया में 2.1 मेगाजूल ऊर्जा खर्च हुई, जबकि मिली 2.5 मेगाजूल ऊर्जा।
इस रिसर्च से जुड़े वैज्ञानिक डॉ. रॉबी स्कॉट ने कहा है कि फ्यूजन लगभग अंतहीन, सुरक्षित और स्वच्छ ऊर्जा का स्रोत है। सूर्य अथवा अन्य तारे फ्यूजन के कारण ही अरबों वर्षों से ‘ऊर्जावान’ हैं। सूर्य में हर सेकंड सैकड़ों टन हाइड्रोजन का फ्यूजन होता रहता है।
वैज्ञानिक दशकों से फ्यूजन पर काम कर रहे हैं क्योंकि इस प्रक्रिया में कार्बन डाई ऑक्साइड गैस नहीं निकलती। कोई रेडियोएक्टिव कचरा भी नहीं निकलता है। फ्यूजन के लिए हाइड्रोजन के दो रूपों (आइसोटोप) का इस्तेमाल किया जाता है- ड्यूटेरियम और ट्राइटियम। वैज्ञानिकों का आकलन है कि एक गिलास पानी से निकलने वाले ड्यूटेरियम और थोड़ी मात्रा में ट्राइटियम से जो बिजली बनेगी, वह एक घर के लिए एक साल तक पर्याप्त होगी।
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