मुजफ्फरनगर । श्री राम कॉलेज के कृषि विभाग एवं कृषि विज्ञान केंद्र चित्तोड़ा के संयुक्त तत्वाधान मे पर्यावरण संरक्षण हेतु फसल अवशेष प्रबंधन विषय पर दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस कार्यशाला की मुख्या अतिथि डॉ प्रेरणा मित्तल, प्राचार्या श्री राम कॉलेज मुज़फ्फरनगर, रही। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता डॉ ओमवीर सिंह विभाग अध्यक्ष कृषि विज्ञानं केंद्र चित्तोड़ा रहे।
दो दिवसीय कार्यशाला के दूसरे दिन डॉ ओमवीर सिंह अध्यक्ष कृषि विज्ञानं केंद्र चित्तोड़ा ने अपने सम्बोधन में बताया की धान, विश्व में मक्का के बाद सबसे अधिक उत्पादित किया जाने वाला अनाज है। उन्होंने बताया कि चीन के बाद भारत, दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा चावल उत्पादक देश है तथा विश्व की लगभग 60 प्रतिशत जनसंख्या अपने दैनिक भोजन के रूप में चावल का उपयोग करती है इसके अलावा धान की फसल के अवशेष का उपयोग पेपर बनाने, मशरूम उत्पादन, कम्पोस्ट बनाने, पशुओं के चारे और ईंधन के रूप में भी किया जाता है। उन्होंने बताया कि फसल अवशेष पौधे के वे भाग (जैसे-भूसा, तना, डंठल, पत्ते व छिलके इत्यादि) होते हैं, जो फसल की कटाई और गहाई के बाद खेत में छोड़ दिए जाते हैं। इन अवशेष को सड़ने में काफी समय लगता है जिस कारण अगली फसल की बुआई में विलम्ब हो जाता है अतः किसान इन अवशेषो को जलाना पसंद करते है। फसल अवशेष जलाने में चीन, भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका शीर्ष पर हैं। भारत में इसको सर्वाधिक पंजाब, हरियाणा तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जलाया जाता है। वर्तमान में हरियाणा व पंजाब जैसे कृषि की दृष्टि से विकसित राज्यों में भी मात्र 10 प्रतिशत किसान ही फसल अवशेषों का प्रबंधन कर रहे हैं। उन्होने जानकारी देते हुये कहा कि हमारे देश में 154.59 मीट्रिक टन/वर्ष, धान के अवशेष का उत्पादन होता है। इसको जलाने से 0.236 टन नाइट्रोजन, 0.009 टन फॉस्फोरस एवं 0.200 टन/वर्ष पोटाश का नुकसान हो रहा है। तकनीकों की जानकारी के अभाव एवं कुछ किसान जानकारी होते हुए भी अनभिज्ञ बनकर फसल अवशेषों को जला रहे हैं। फसल अवशेषों का प्रबंधन हमारे देश में उचित तरीके से नहीं किया जाता है। इसलिए यह हमारे लिए बहुत ही गंभीर समस्या बनती जा रही है। यह कहना भी सही होगा कि इसका उपयोग मृदा में जीवांश पदार्थों के रूप में न करके अधिकतर भाग को जलाकर नष्ट कर दिया जाता है या दूसरे घरेलू कार्यों में उपयोग कर लिया जाता है। एक अध्ययन के अनुसार फसल के अवशेषों का सिर्फ 22 प्रतिशत ही इस्तेमाल होता है, शेष जला दिया जाता है।
ऽ ऽफसलों के अवशेषों को जलाने पर उनके जड़, तना एवं पत्तियों में संचित लाभदायक पोषक तत्व जलकर नष्ट हो जाते हैं। धान की पुआल को खेत में जलाने पर पुआल में उपस्थित नाइट्रोजन की लगभग सारी मात्रा, फॉस्फोरस का लगभग 25 प्रतिशत, पोटेशियम का 20 प्रतिशत, और सल्फर का 5 से 50 प्रतिशत का नुकसान हो जाता है।
इस अवसर पर डॉ पी अस तिवारी सहायक प्रोफेसर कृषि विज्ञान केन्द्र चितौडा ने बताया की फसल अवशेष को जलाने से क्षोभ मंडल में गैसीय प्रदूषकों जैसे-कार्बनमोनोऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रसऑक्साइड और हाइड्रोकार्बन आदि गैसे प्रमुखता से प्रभावी होती है। उन्होंने बताया किएक टन भूसे को जलाने से 3 कि.ग्रा. पार्टिकुलेटमैटर (पीएम), 60 कि.ग्रा. कार्बनमोनोऑक्साइड, 1,460 कि.ग्रा. कार्बनडाइऑक्साइड, 199 कि.ग्रा. राख और 2 कि.ग्रा. सल्पफर डाइऑक्साइड निकलती है। अतः इन गैसों के कारण सामान्य वायु की गुणवत्ता में कमी आ जाती है। उन्होंने ने बताया कि धान का फसल अवशेष जलाना विशेष रूप से एयरोसोल कणों जैसे मोटेकण (पीएम 10) और महीन कण (पीएम 2.5) का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। विभिन्न अध्ययनों में पाया गया है कि कृषि अवशेष जलाने के कारण निकलने वाले महीन कण आसानी से फेफड़े में प्रवेश कर जाते हैं, जिससे हृदय में परेशानी होती है।
ऽ कटाई उपरांत धान की फसल अवशेष को जलाने पर आसपास के खेतों, खलिहानों एवं आबादी वाले क्षेत्रों में भी आग लगने की आशंका बनी रहती है।
इस अवसर पर गेस्ट स्पीकर कृषि विज्ञान केन्द्र चितौडा डॉ सुरेंद्र सिंह ने कार्यशाला के विषय पर विस्तार से बोलते हुये कहा कि फसल के अवशेष को जलने की वजाए उसका उपयोग पेरा मशरूम खेती के लिए भी किया जा सकता है।
इस अवसर पर गेस्ट स्पीकर कृषि विज्ञान केन्द्र चितौडा डॉ जे के आर्य ने बताया की हम धान की पुराल से मशरूम की जैविक दक्षता 50 से 60 प्रतिसत है यानीआप 500 से 600 कुंतल धान की पुराल से 250 से 300 कुंतल से भी जायदा मशरूम उत्पादन ले सकते है जिसकी कीमत बाजार में 2000000 से 2400000 रूपये तक हो सकती है। इसके साथ साथ इन्होने प्राकर्तिक खेती पर व्याख्यान दिया।
इस अवसर पर श्रीराम कॉलेज के निदेशक डॉ अशोक कुमार ने अपने सम्बोधन में बताया की धान फसल की पराली के प्रबंधन के लिए पूसा डीकम्पोजर का उपयोग भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पूसा के वैज्ञानिकों द्वारा बनाया गया एक ऐसा छोटा कैप्सूल है, जो फसल अवशेषों को लाभदायक कृषि अपशिष्ट खाद में बदल देता है। एक कैप्सूल की कीमत सिर्फ 4-5 रुपये है और एक एकड़ खेत के अवशेष को उपयोगी खाद में बदलने के लिए केवल 4 कैप्सूल की आवश्यकता होती है। फसल के अवशेष को खेत में आग लगाने से सर्वप्रथम मृदा नमी में कमी एवं मृदा तापमान में बढ़ोतरी होती है, जिससे खेत की उर्वराशक्ति कम होने के साथ-साथ मृदा की भौतिक, रासायनिक एवं जैविक दशा पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
डॉ विनीत शर्मा ने पर्यावरण संरक्षण को ध्यान में रखते हुए बताया की किसान फसल अवशेषो को न जलाकर उनका उपयोग सूखा चारा के रूप में लेकर पशु चारे में मूल्या वर्धन कर अधिक लाभ अर्जित कर सकते है जिससे दूध उत्पादन में बी बहुत वर्धि होगी और किसान लोग लाभ कमा सकते है।
कार्यशाला के दूसरे दिन के दूसरे सत्र में पोस्टर प्रतियोगिता एवं मौखिक प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। पोस्टर प्रतियोगिता कंप्यूटर संकाय, बायो साइंस संकाय व कृषि विभाग के छात्र / छात्राओं द्वारा आयोजित की गई। जिसमें कुल 14 पोस्टर दर्शाये गये। पोस्टर प्रतियोगिता में प्रथम स्थान पर रूना सिंह (बी एस सी कृषि विज्ञान) दूसरे स्थान पर अर्जुन सिंह (बी सी ए) तथा तीसरे स्थान पर ध्रुव विश्व कुमार (बी सी ए) ने प्राप्त किया। वही मौखिक प्रतियोगिता कंप्यूटर संकाय, बायो साइंस संकाय व कृषि विभाग के छात्र /छात्राओं द्वारा आयोजित की गयी जिसमे 15 छात्र / छात्राओं ने भाग लिया जिसमे से प्रथम स्थान पर चांदनी कुमारी दूसरे स्थान पर राजनंदनी तथा लीलावती ने तृतीया स्थान प्राप्त किय।
कार्यक्रम के अंत में कार्यक्रम संचालक डॉ विक्रांत कुमार, सहायक प्रवक्ता कृषि विज्ञान विभाग ने श्री राम कॉलेज के निदेशक डॉ अशोक कुमार की बातो को ध्यान में रखते हुए कहा की श्री राम कॉलेज के कृषि विभाग के द्वारा जल्दी ही गांव - गांव जाकर जागरूकता अभियान चलाये जायेंगे जिसमे किसानो को फसल अवशेष प्रबंधन और पर्यावरण संरक्षण के लिए जागरूक किया जायेगा।
इस कार्यशाला में श्रीराम कॉलेज के कम्प्यूटर एप्लीकेशन विभाग के डीन डॉ निशांत राठी, डॉ विनीत कुमार शर्मा, डॉ पूजा तोमर, डॉ अंजली, डॉ जीतेन्द्र, डॉ अर्चना नेगी, आबिद अहमद, राजकुमार, सचिन साहू और सूरज सिंह मौजूद रहे। कार्यक्रम के अंत में डॉ विक्रांत कुमार ने सभी वैज्ञानिक गण और कार्यक्रम में मौजूद रहे सभी शिक्षक गण और सभी छात्रों का धन्यवाद कर कार्यक्रम का समापन किया।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें