शुक्रवार, 10 दिसंबर 2021

भाभी की कुर्बानी : ऐसे बचाई देवर की जान


मुजफ्फरनगर। पिछले पांच वर्षों के दौरान भारत के लोगों में क्रोडिक किडनी रोगों (सीकेडी) के कारण किडनी खराब होने के मामले तेजी से बढ़े हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए किडनी संबंधी बीमारियों की सही समय पर पहचान के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने और किडनी ट्रांसप्लांट सर्जरी के क्षेत्र में हुई तरक्की के बारे में बताने के लिए मैक्स हॉस्पिटल वैशाली ने आज एक मरीज की मिसाल पेश करते हुए किडनी रोगों संबंधी विशेष सत्र का आयोजन किया। 

इस सत्र का संचालन डॉ. मनोज सिंघल ने किया। उन्होंने इस मौके पर बताया कि किडनी के बारे में जागरूकता बढ़ाना और इस क्षेत्र में हुई तरक्की के बारे में लोगों को बताना बहुत जरूरी है ताकि कई लोगों की जान बचाई जा सके। उन्होंने इस दौरान मुजफ्फरनगर के 26 वर्षीय एक युवक के जटिल मामलों के बारे में भी बताया जिसकी हाल ही में सफल किडनी ट्रांसप्लांट सर्जरी कर उसकी जिंदगी बचाई गई। 

मरीज मुर्तजा को पिछले साल किडनी खराब होने के आखिरी चरण में पहुंच जाने का पता चला और उसे हिमोडायलिसिस पर रखा जाने लगा। डायलिसिस कराते रहने के बावजूद लगातार कमजोरी, अनियंत्रित ब्लड प्रेशर और हेपेटाइटिस सी इंफेक्शन होने के कारण उसे किडनी ट्रांसप्लांट की सख्त जरूरत थी क्योंकि उसका शरीर डायलिसिस प्रक्रिया सहन करने में असमर्थ हो रहा था। उसके परिवार वाले उसी ब्लड ग्रुप की किडनी तलाशने में जी—जान से जुटे थे लेकिन तब तक उसे कई महीनों तक डायलिसिस पर ही रखना पड़ा। किडनी दानकर्ता का ब्लड ग्रुप नहीं मिलने के कारण उसके लिए या तो एबीओ या स्वैप ट्रांसप्लांटेशन ही विकल्प रह गया था। आखिरकार बड़े भाई की पत्नी ने खुद किडनी दान कर देवर की जान बचाने के लिए आगे आई। 

मैक्स हॉस्पिटल में नेफ्रोलॉजी तथा किडनी ट्रांसप्लांटेशन के वरिष्ठ निदेशक डॉ. मनोज के. सिंघल ने बताया, 'मरीज की स्थिति दिन—ब—दिन बिगड़ती जा रही थी और जब तक सही दानकर्ता नहीं मिल जाता उसे बार—बार ब्लड ट्रांसफ्यूजन कराना जरूरी था। मरीज की आर्थिक स्थिति उतनी अच्छी नहीं थी कि वह और उसका परिवार बार—बार ट्रांसफ्यूजन पर खर्च करता रहे। जिंदगी और मौत के बीच झूल रहे देवर की दयनीय स्थिति को देखते हुए उसकी भाभी अपनी किडनी दान करने के लिए आगे आई। उसका किडनी ट्रांसप्लांट सफल रहा और अब उसे हिमोडायलिसिस की भी कोई जरूरत नहीं रह गई। अब उसकी सेहत भी बहुत अच्छी है। उसके एचसीवी संक्रमण का भी दवाइयों से इलाज चल रहा है।' 

सीकेडी से पीड़ित मरीजों की संख्या पिछले एक दशक में लगभग दोगुनी हो चुकी है और बड़ी तेजी से बढ़ भी रही है। एक अनुमान है कि भारत के लगभग 10 फीसदी युवा किडनी रोगों के किसी—न—किसी स्वरूप से पीड़ित हैं। इतना ही नहीं, भारत में डायबिटीज और हाइपरटेंशन के मामले भी किडनी रोगियों की संख्या बढ़ा रहे हैं जिस वजह से सीकेडी के 60 फीसदी से ज्यादा मामले सामने आए हैं। आशंका है कि जल्द ही यह संख्या खतरनाक स्तर से आगे निकल जाएगी। 

डॉ. सिंघल कहते हैं, 'किडनी खराबी या क्रोनिक किडनी रोग (सीकेडी) धीरे—धीरे बढ़ने वाला रोग है जिसकी शुरुआत तब होती है जब किडनी शरीर के अवशिष्टों और विषाक्त पदार्थों को रक्त से फिल्टर करने में असमर्थ हो जाता है। हालांकि इस स्थिति से उबरा नहीं जा सकता है लेकिन सही समय पर इसकी पहचान हो जाने और इलाज कराने से रोग की बढ़ती रफ्तार को धीमा किया जा सकता है। अत्याधुनिक सर्जिकल तकनीकों और बेहतर चिकित्सा सुविधाओं की बदौलत ट्रांसप्लांट सर्जरी की सफलता दर 97 फीसदी तक पहुंच चुकी है। इसमें दानकर्ता भी सर्जरी के एक—दो हफ्ते बाद ही सामान्य जीवन जीने लगता है और उसे 3—4 दिन से ज्यादा अस्पताल में रहने की जरूरत नहीं पड़ती हे। अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी के साथ—साथ क्वालिटी स्वास्थ्य सुविधाएं दे रहा मैक्स हॉस्पिटल, वैशाली मरीजों के लिए पसंदीदा स्वास्थ्य केंद्र बन चुका है।'

उन्होंने बताया, 'इस रोग के बारे में जागरूकता का अभाव इससे होने वाली गंभीर बीमारी तथा मृत्यु दर में तेज वृद्धि कर रहा है जिस कारण इसे भारत का सबसे कम ज्ञात और सबसे कम पहचाना गया रोग माना जाता है। लिहाजा लोगों को सही समय पर इसकी पहचान कराने के बारे में जागरूक करना जरूरी है तथा नेफ्रोलॉजी के क्षेत्र में उपलब्ध आधुनिक चिकित्सा पद्धतियां और इस रोग के प्रबंधन के बारे में भी बताना होगा जिससे इसकी रोग दर और मृत्यु दर पर काबू पाया जा सके।'

इस बीमारी में ज्यादातर लोगों में कोई लक्षण जल्दी नजर नहीं आत और आखिरी चरण में ही इसका पता चल पाता है। ऐसे में हर साल जांच कराते रहना जरूरी हे। जब किडनी का काम 10 फीसदी से नीचे तक पहुंच जाता है तो मरीज को आजीवन डायलिसिस या किडनी ट्रांसप्लांट की जरूरत पड़ जाती है।

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