मुजफ्फरनगर । भगवान विष्णु के आठवें अवतार सोलह कला संपन्न मधुसूदन भगवान श्री कृष्ण का जन्म इस वर्ष सौभाग्य का विषय है कि जो मूल रूप से द्वापर में जन्म था वैसे ही संयोग इस बार भी बन रहा है। श्री कृष्ण का जन्म भाद्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रात्रि में रोहिणी नक्षत्र में वासुदेव और देवकी के पुत्र के रूप में द्वापर में हुआ था।
महामृत्युंजय सेवा मिशन अध्यक्ष पंडित संजीव शंकर ने बताया कि यह सारा संयोग इस बार 30 अगस्त दिन सोमवार को पड रहा है क्योंकि अष्टमी तिथि 29 अगस्त रविवार को रात्रि में 1:25 से प्रारंभ होकर 30 अगस्त सोमवार को रात्रि 1:59 तक रहेगी, वही रोहिणी नक्षत्र 30 अगस्त को सुबह 6:39 से 31 अगस्त सुबह 9:44 तक रहेगा, अतः यह वर्ष भगवान श्री कृष्ण का "5248 वा" जन्म दिवस है।
गीता का उपदेश देने वाले योगेश्वर भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव पर भक्त 30 अगस्त सोमवार को विधिवत स्नान-आदि से निवृत्त होकर व्रत रखें। वह रात्रि में 11:59 से 12:44 की अवधि में शुभ मुहूर्त है श्री कृष्ण का पूजन कर व्रत खोलें कुछ भक्त रोहिणी नक्षत्र समाप्ति पर ही व्रत का पारायण करते हैं।
इस व्रत में मुख्य रूप से भगवान श्री कृष्ण के बाल स्वरूप का पूजन किया जाता है, मोर पंख, मुरली, पीले वस्त्र मुकुट इत्यादि से उनका श्रंगार किया जाता है और मक्खन मिश्री का भोग लगाकर प्रसाद वितरित किया जाता है। श्री कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत संतान प्राप्ति आयु एवं समृद्धि के लिए रखा जाता है।
कहते हैं कि आज भी जो मित्र भाव से भगवान श्री कृष्ण की सेवा करता है भगवान श्रीकृष्ण भी सखा रूप में उसके जीवन के लिए उपयोगी सही मार्गदर्शन करते हैं।
सामान्य रूप से
श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे हे नाथ नारायण वासुदेव,
जिव्हे पिबस्वामृतमेतदेव गोविन्द दामोदर माधवेति,
मंत्र के माध्यम से भगवान श्री कृष्ण के 9 नामों का उच्चारण सदैव करते रहना चाहिए।
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