नागल।
*हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए।*
*इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।।*
*आज ये दीवार परदों की तरह हिलने लगी।*
*शर्त है कि लेकिन यह बुनियाद हिलनी चाहिए।।*
*सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं।*
*मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।।*
जैसी महान गजलों के गजलकार व हिंदी के महाकवि दुष्यंत कुमार त्यागी की 93 वर्षीया पत्नी राजेश्वरी देवी का रविवार रात 10 बजे भोपाल के अस्पताल में निधन हो गया। उनके निधन से राजेश्वरी देवी के मायका डंघेडा में शोक की लहर है।
बिजनौर जनपद के राजपुर नवादा निवासी महाकवि दुष्यंत कुमार त्यागी की शादी 30 नवंबर 1949 को डंघेड़ा निवासी किसान सूरजभान की पुत्री राजेश्वरी के साथ हुई थी। दुष्यंत कुमार त्यागी आकाशवाणी में काम करते हुए मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में बस गये थे। गजलों के माध्यम से देश को नई दिशा देने वाले महाकवि दुष्यंत कुमार त्यागी 13 दिसंबर 1975 को अल्पायु में ही अपने परिजनों तथा प्रशंसकों को रोता बिलखता छोड़कर दुनिया को अलविदा कह गए थे।
राजेश्वरी देवी के मायके में उनके भतीजे अरुण कुमार त्यागी ने बताया कि फूफा जी तो हम देख नहीं पाए लेकिन बुआ जी को अपने मायके के गांव से बहुत प्यार था जो लगभग हर वर्ष आती थी। बुआ जी के गांव में रहने के दौरान परिवार में त्यौहार जैसा माहौल रहता था। अरुण ने बताया कि राजेश्वरी के बड़े बेटे आलोक त्यागी बैंक व छोटे बेटे अपूर्व त्यागी सेना से सेवानिवृत्त होकर अपने परिवार के साथ भोपाल व आगरा में रह रहे हैं। रविवार देर रात उनकी मौत की सूचना से पूरा परिवार स्तब्ध है।
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