आओ आपको बलिदान की एक मिसाल से अवगत करवाते हैं। इतिहास में शायद ही ऐसी कोई मिसालें मिलेंगी……. जब किसी बाप ने कौम के लिए ……. राष्ट्र के लिए…….. *इस्लाम के अत्याचारो के खिलाफ एक सप्ताह में अपने चारों बेटे क़ुर्बान कर दिए हों।*
- आर्य
_*21 दिसंबर:*_
_श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने परिवार सहित श्री आनंद पुर साहिब का किला छोड़ा।_
_*22 दिसंबर:*_
गुरु साहिब अपने दोनों बड़े पुत्रों सहित चमकौर के मैदान में पहुंचे और गुरु साहिब की माता और छोटे दोनों साहिबजादों को गंगू नामक ब्राह्मण जो कभी गुरु घर का रसोइया था उन्हें अपने साथ अपने घर ले आया।
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*चमकौर की लड़ाई शुरू* और दुश्मनों से जूझते हुए गुरु साहिब के बड़े साहिबजादे _श्री अजीत सिंह आयु केवल *17 वर्ष* और छोटे साहिबजादे श्री जुझार सिंह आयु केवल *14 वर्ष* अपने 11 अन्य साथियों सहित धर्म/ संस्कृति और राष्ट्र की रक्षा के लिए वीरगति को प्राप्त हुए।
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_*23 दिसंबर :*_
गुरु साहिब की माता श्री गुजर कौर जी और दोनों छोटे साहिबजादे गंगू ब्राह्मण(जन्म से योग्यता से नहीं) के द्वारा गहने एवं अन्य सामान चोरी करने के उपरांत तीनों को मुखबरी कर मोरिंडा के चौधरी गनी खान और मनी खान के हाथों ग्रिफ्तार करवा दिया गया और गुरु साहिब को अन्य साथियों की बात मानते हुए चमकौर छोड़ना पड़ा।
_*24 दिसंबर :*_
तीनों को सरहिंद पहुंचाया गया और वहां ठंडे बुर्ज में नजरबंद किया गया।
_*25 और 26 दिसंबर:*_
छोटे साहिबजादों को नवाब वजीर खान की अदालत में पेश किया गया और उन्हें धर्म परिवर्तन करने के लिए दबाव दिया गया।
नवाब वजीर खां ने फिर पूछा ……. बोलो इस्लाम कबूल करते हो ?
छोटे साहिबजादे फ़तेह सिंह जी आयु 6 वर्ष ने पूछा ……. *अगर मुसलमाँ हो गए तो फिर कभी नहीं मरेंगे न?*
वजीर खां अवाक रह गया ……. उसके मुह से जवाब न फूटा …….
तो साहिबजादे ने जवाब दिया कि *जब मुसलमाँ हो के भी मरना ही है तो अपने धर्म में ही अपने धर्म की खातिर क्यों न मरें?? ……..*
_*27 दिसंबर:*_
_साहिबजादा जोरावर सिंह उम्र महज *8 वर्ष* और साहिबजादा फतेह सिंह आयु केवल *6 वर्ष*_ को तमाम जुल्म ओ जब्र उपरांत जिंदा दीवार में चीनने उपरांत जिबह (गला रेत) कर हत्या किया गया और खबर सुनते ही माता गुजर कौर ने अपने साँस त्याग दिए।
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