मुजफ्फरनगर । श्रीराम काॅलेज में महाविद्यालय की आंतरिक गुणवत्ता सुनिश्चयन प्रकोष्ठ के आहवान पर उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा चलाये जा रहे मिशन शक्ति अभियान के तहत शिक्षक शिक्षा संकाय द्वारा पोस्टर मेकिंग प्रतियोगिता का आॅनलाईन आयोजन किया गया, जिसमें शिक्षक शिक्षा संकाय के 42 विद्यार्थियों द्वारा प्रतिभाग किया गया।
प्रतियोगिता का शुभारम्भ करते हुए सर्वप्रथम विभाग की प्रवक्ता उषा वर्मा द्वारा प्रतियोगिता की थीम ‘नारी सशक्तिकरण’ के विषय में विद्यार्थियों को बताया गया तथा निर्धारित समय में उन्हे स्वप्रेरणा से पोस्ट बनाकर सबमिट करने की प्रक्रिया के बारे में समझाया गया।
प्रतियोगिता की थीम के विषय में बताते हुए श्रीराम काॅलेज की प्राचार्य डाॅ0 प्रेरणा मित्तल ने कहा कि महिलायें किसी भी समाज का स्तम्भ है। हमारे आस पास महिलायें, बेटियां, माताएं, सक्षम सहयोगी और अन्य कई भूमिकाओं को बड़ी कुशलता व सौम्यता से निभा रहीं है। लेकिन आज भी दुनिया के कई हिस्सों में समाज उनकी भूमिका को नजरअंदाज करता है। इसके चलते महिलाओं को बड़े पैमाने पर असमानता, उत्पीड़न, वित्तीय निर्भरता और अन्य सामाजिक बुराइयों का खामियाजा सहन करना पड़ता है। सदियों से ये बंधन महिलाओं को पेशेवर व व्यक्तिगत ऊँचाइयों को प्राप्त करने से अवरुद्ध करते रहे हैं। उनको समाज में उचित व सम्मानजनक स्थिति पर पहुँचाने के लिए सरकार ने विभिन्न महिला सशक्तिकरण कार्यक्रम आरम्भ किये हैं जो अलग पृष्ठभूमि की महिलाओं के आत्म सम्मान, आंतरिक शक्ति और रचनात्मकता को पोषण करने के लिए ठोस आधार प्रदान करते हैं। इस तरह से स्थापित महिलाएं आज अपने कौशल, आत्मविश्वास और शिष्टता के आधार पर दुनिया की किसी भी चुनौती को संभालने में सक्षम हैं। वे आगे आ रहीं हैं और अपने परिवारों, अन्य महिलाओं और समाज के लिए शांति और सकारात्मक सामाजिक परिवर्तन के अग्रदूत के रूप में स्थापित कर रही हैं।
श्रीराम काॅलेज के निदेशक डाॅ0 आदित्य गौतम ने कहा कि भारतीय समाज में विभिन्न धर्मों को मानने वाले लोग रहते है। महिलाओं को हर धर्म में एक अलग स्थान दिया गया है जो लोगों की आँखों को ढ़के हुए बड़े पर्दे के रुप में और कई वर्षों से आदर्श के रुप में महिलाओं के खिलाफ कई सारे गलत कार्यों (शारीरिक और मानसिक) को जारी रखने में मदद कर रहा है। प्राचीन भारतीय समाज में सती प्रथा, नगर वधु व्यवस्था, दहेज प्रथा, यौन हिंसा, घरेलू हिंसा, गर्भ में बच्चियों की हत्या, पर्दा प्रथा, कार्य स्थल पर यौन शोषण, बाल मजदूरी, बाल विवाह तथा देवदासी प्रथा आदि परंपरा थी। इस तरह की कुप्रथा का कारण पितृसत्तामक समाज और पुरुष श्रेष्ठता मनोग्रन्थि है। आधुनिक समाज महिलाओं के अधिकार को लेकर ज्यादा जागरुक है जिसका परिणाम हुआ कि कई सारे स्वयं-सेवी समूह और एनजीओ आदि इस दिशा में कार्य कर रहे है। कानूनी अधिकार के साथ महिलाओं को सशक्त बनाने के लिये संसद द्वारा पास किये गये कुछ अधिनियम है। जरुरत है कि हम महिलाओं के खिलाफ पुरानी सोच को बदले और संवैधानिक और कानूनी प्रावधानों में भी बदलाव लाये।
अन्त में प्रतियोगिता का परिणाम घोषित किया गया। छात्र-छात्राओं से प्राप्त पोस्टरो के अवलोकन उपरान्त निर्णायक मंडल की संस्तुति के आधार पर बी0एड0 द्वितीय वर्ष की छात्रा सनत फातिमा ने प्रथम, शिवांगी गुप्ता ने द्वितीय तथा गजाला परवीन व उमंग मित्तल ने संयुक्त रूप से तृतीय स्थान प्राप्त किया। इनके अतिरिक्त छात्र रविकान्त द्वारा बनाये गये पोस्टर की सराहना भी की गई।
आयोजन को सफल बनाने में भानू प्रताप वर्मा, संदीप राठी, उषा वर्मा, जगमेहर गौतम, टीना अग्रवाल आदि प्रवक्तागण का सहयोग रहा।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें