मंगलवार, 10 नवंबर 2020

हरदिल अजीज शख्सियत थे पंडित विष्णु शर्मा


मुजफ्फरनगर । ज्योतिषाचार्य पंडित विष्णु शर्मा वो हरदिल अजीज शख्सियत थे जिन्होंने अपनी प्रतिभा का लोहा कला और ज्योतिष के तमाम क्षेत्रों में मनवाया। उनका निधन जिले के लिए अपूर्णीय क्षति है। 


01 जुलाई 1939 को कनियान गांव (शामली) में जन्मे पंडित विष्णु शर्मा ने मुज़फ़्फ़रनगर डीएवी कॉलेज में शिक्षा ग्रहण की। गांधी आश्रम से विष्णु लोक तक के अपने सफर में उन्होंने लोकप्रियता की ऊंचाईयां छुईं। 


विद्यार्थी जीवन से धार्मिक और सामाजिक कार्यों में रूचि रही। शुरुआती दिनों में गांधी आश्रम में भी सेवाएँ दीं। शहर की रामलीलाओं में कई साल तक राम और दशरथ के पात्र बने। वेदपाठी भवन में आचार्य सीताराम चतुर्वेदी के सानिध्य में ज्योतिष शास्त्र का अध्ययन किया। उन्हें सामुद्रिक शास्त्र और अंक विज्ञान में विशेष महारथ हासिल थी। कई बार ज्योतिष सम्मेलनों में स्वर्ण पदक से सम्मानित किए गए। 


दिल्ली में आयोजित विश्व धर्म संसद में ज्योतिष विज्ञान शिरोमणि की उपाधि से अलंकृत किया गया।आचार्य सीता राम चतुर्वेदी से प्रेरित होकर नब्बे के दशक में शासकीय और सांस्कृतिक सेवाओं को अलविदा कह दिया और पूरी तरह धरम-करम के कार्यों में रच बस गए।अपराध की राजधानी कहे जाने वाले मुज़फ़्फ़रनगर में ज्योतिष और धर्म की अनूठी पौध रोपी। इसके तहत मीनाक्षी चौक पर विष्णु लोक की स्थापना की। यह संस्थान पश्चिमी उत्तर में ज्योतिष मंथन और धार्मिक सामग्री मिलने का अनूठा केंद्र माना जाता है।यहाँ रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, मुरली मनोहर जोशी, पंडित शिव कुमार, कलराज मिश्र और योगेन्द्र नारायण माथुर सरीखी तमाम हस्तियों का आना जाना लगा रहता है।  


पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सांस्कृतिक गतिविधियों को नए आयाम दिए।सांस्कृतिक रूप से बंजर पश्चिमी इलाक़े में सन 1956 में सबसे पहली ओरकेष्ट्रा कम्पनी की नींव रखी। इसका नाम कला संगम रखा। उसमें प्रसिद्ध गायक डीपी कौशिक, विनय जैन, नेपाल सिंह, आनंद कमल, निर्मल सिंह और इक़बाल सोनी सरीखे नामचीन कलाकार शामिल थे। थोड़े ही समय में इस ग्रुप की ख्याति पूरे उत्तरी भारत में हो गई। बाद में कला संगम के बैनर से सिने गायक सोनू निगम के पिता अगम कुमार भी जुड़ गए। मंच संचालन में विष्णु शर्मा जी का कोई सानी नहीं था। इस बेल्ट में संगीत से जुड़े कलाकारों की लम्बी खेप तैयार की। वे देश विदेश में सुर और ताल बिखरते रहे। 


विकास विभाग में 26 साल तक शासकीय सेवाएँ दीं।1986 में स्वैच्छिक सेवनिवृत्ति ले ली।कुशल कार्यशैली और मिलनसारिता के चलते प्रदेश के ब्यूरोकरेट्स में इनकी खासी पकड़ रही।


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