शनिवार, 10 अक्टूबर 2020

मानव जीवन परमात्मा की अनुपम कृति : शांतनु महाराज


 


मुजफ्फरनगर। प्रबुद्ध गुरुकुल सिद्धकुटी एवं कामधेनु गऊशाला देवबंद के संचालक स्वामी शान्तनु महाराज ने कहा कि मानव जीवन परम पिता ईश्वर की अनुपम कृति है। जो मननशील और विचारशील है, वहीं मनुष्य है।


शहर के संतोष विहार में वैदिक संस्कार केंद्र पर आयोजित संगोष्ठी में मुख्य वक्ता स्वामी शान्तनु महाराज ने कहा कि जीवन में पहला गुरु माता, दूसरा गुरु पिता तथा तीसरा गुरु आचार्य है। अब माता मम्मी बन गई है, जो भारतीय संस्कृति का शब्द नहीं है। वेद कहते है- 'माता निर्माता भवति' अर्थात मां ही संतान का निर्माण करती है। संतों, आचार्यो और विद्वानों का सत्कार समाज की सनातन परंपरा है। अभिभावक पुत्र-पुत्रियों को संस्कारी बनाये। माता-पिता की सेवा पुण्य कर्म है। लालच, स्वार्थ, द्वेष से बचिए, तभी जीवन में शांति, ऊर्जा बचेगी। मांसाहार और नशे से बचकर युवा यज्ञ, योग, ब्रह्मचर्य का पालन करें। 


वैदिक संस्कार चेतना अभियान संयोजक आचार्य गुरुदत्त आर्य ने कहा कि संस्कार और संस्कृति केवल वाणी में नहीं, आचरण में दिखनी चाहिए। जातिवाद, भ्रष्टाचार और बेईमानी ने समाज को क्षति पहुँचाई है। आर्य समाज की ओर से स्वामी शान्तनु महाराज का अभिनंदन किया गया। गौ सेवा के लिए आठ हजार की धनराशि भेंट की गई। आंनद पाल सिंह आर्य, आर.पी.शर्मा, जितेंद्र आर्य, डॉ. सतीश आर्य, राजेंद्र प्रसाद आर्य, योगेश्वर दयाल, जनेश्वर प्रसाद आर्य, सुरेंद्र दत्त शर्मा, गजेंद्र राणा, राजवीर सिंह, पुष्पेंद्र आर्य आदि मौजूद रहे।


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