मुज़फ्फरनगर । जिले में किसान के लिए गन्ना व केले की खेती लाभदायक है।
पीजेंट्स वेल्फेयर एसोसिएशन के संयोजक अशोक बालियान ने बताया कि गाँव पीनना के अपने साथी राजीव चौधरी के खेत में गन्ना, केले व पपीते की खेती को देखने का अवसर मिला। राजीव चौधरी के खेत में गन्ने की लाइन की दूरी सात फीट है। गन्ने की दो लाइनों के बीच में सात-सात फीट पर केले की पौध लगाई है जिसमे पौधे से पौधे की दूरी पांच फिट है। इसमें खेत में गन्ने की अनुमानित पैदावार 60 क्विंटल प्रति बीघा है। केले की फसल को तैयार होने में करीब 14 माह का समय लगता है। राजीव चौधरी के खेत में ड्रिप पद्धति से सिचाई होती है। एक खेत में उन्होंने केले की खेती भी शुरू की है।
केले की पौध जून के पहले सप्ताह में लगाने के बाद दस माह के अंदर फल देना शुरू कर देता है। केले के एक पेड़ पर औसतन 30 किलो केले का फल आता है। एक बीघा में केले की पौध के 200 पेड़ लगाए जाते हैं। इसप्रकार एक बीघा में 6 हजार किलो केले का उत्पादन होता है, जिसकी औसत मूल्य 15 रु प्रतिकिलो के हिसाब से कुल मूल्य 90 हजार रु बैठता है और केले की प्रति बीघा खेती में दवाइयों, खाद के लिए 30 हजार रुपये प्रति बीघा का खर्च आता है। खेत में एक बार तैयार किया गया पौधा अगले साल पैडी के रूप फल देता है। यह पैडी हर साल फुट कर लगभग छ से सात साल तक चलती रहती है।
बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के मछही गांव में इजराइली तकनीक से तैयार केले की किस्म जी-9 की खेती कर प्रति एकड़ 3.50 लाख रुपए की आमदनी हो रही है। यह फसल महज 9 माह में तैयार हो जाती है। जबकि, केले के अब तक के अन्य किस्मों से 14 माह में फल मिलते हैं।
इस सहफसली खेती में गन्ने का उत्पादन कम नहीं हुआ है और दूसरी केला की फसल भी भरपूर मात्रा में मिल रही है। अमरूद की फसल किसानों को वर्ष में दो बार मिल जाती है। कम जमीन में भी अमरूद और केले की बागवानी लगाई जा सकती है। किसानों को केला, अमरूद और आम की फसल की खेती करने पर अनुदान भी दिया जा रहा है। राजीव चौधरी ने जनपद में खेती का स्वरूप बदलने के साथ प्रगति की नई राह की शुरुआत की है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें