डॉ अशोक त्रिपाठी की पुस्तक “नागा सन्यासियों का इतिहास” का विश्लेष्ण- अशोक बालियान
मुजफ्फरनगर । हमे अपने साथी संदीप गोयल के साथ जनपद मुज़फ्फरनगर में सनातन धर्म महाविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर व “नागा सन्यासियों का इतिहास” के लेखक डॉ अशोक त्रिपाठी से मुलाक़ात का करने का अवसर मिला। इनके शोध-आलेख तथा अन्य रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रमुखता से प्रकाशित होती रहती है। डॉ अशोक त्रिपाठी लेखन की दुनिया में एक जाना पहचाना नाम है।
डॉ अशोक त्रिपाठी की पुस्तक “नागा सन्यासियों का इतिहास” के अनुसार देश भर में नागा सन्यासियों का धर्मरक्षा का इतिहास रहा है। नागा सन्यासियों के 13 अखाड़ों में जूना अखाड़ा, महानिर्वाणी अखाड़ा, श्री निरंजनी अखाड़ा, अटल अखाड़ा, आवाहन अखाड़ा, अग्नि अखाड़ा, आनंद अखाड़ा में ही नागा साधु को दीक्षित करते हैं। दशनामी जूना अखाड़े में सबसे अधिक नागा संन्यासी हैं। अखाड़े के मुखिया आचार्य महामंडलेश्वर होते हैं।
महर्षि वेद व्यास ने संगठित रूप से वनवासी परंपरा की शुरुआत की थी। उसके बाद महर्षि शुकदेव, अनेक ऋषि और संतों ने इस परंपरा को आगे बढ़ाया था। आदि शंकराचार्य ने चार मठ स्थापित कर दशनामी संप्रदाय का गठन किया था। वर्तमान में देश में जितने अखाड़ों हैं सब सोलहवीं-सत्रहवीं शताब्दी के बीच आकार ले चुके थे।
देश के चार स्थानों पर लगने वाले कुंभ मेले में ही इनका समागम होता है। कुंभ मेले के उपरांत नागा संन्यासी अखाड़े के आश्रम, मंदिर और तप के लिए हिमालय की गुफाओं में चले जाते हैं। महिला नागा साधु की अलग दुनिया है। इन महिला नागा सन्यासियों के शिविर में कोई भी आम व्यक्ति बिना इन की इजाजत के प्रवेश नहीं कर सकता है। ये गेरुआ या पीला वस्त्र धारण करती है ।
कुंभ देश का सबसे बड़ा धार्मिक मेला है। यह हर 12 वर्ष बाद नासिक, हरिद्वार, इलाहाबाद और उज्जैन में मनाया जाता है।
परम्पराओं और संस्कृति के बारे में कहा जाता है कि ये आसानी से खत्म नहीं होती, बल्कि समय के बदलाव के साथ खुद को ढालकर नए ढंग से हमारे जीवन का हिस्सा बन जाती हैं। भारत का विश्व प्रसिद्ध कुंभ मेला इस बात की पुष्टि करते हुए, परम्परा में आधुनिकता का अद्भुत संगम है। संस्कृतियों के पनपने में मेलों और विभिन्न पर्वों का विशेष योगदान है।
भारत अगर कश्मीर से ले कर कन्याकुमारी तक विभिन्न राजाओं के रहते हुए एक राष्ट्र रहा है तो ये इस देश की धर्म प्राण संस्कृति के कारण भी था। दशनामी संन्यासी जूना अखाड़े में कई नागा भी हुए, जिनका युद्ध का इतिहास रहा है।
इनकी पुस्तक “नागा सन्यासियों का इतिहास” आलेखों, संदर्भो, इतिहास एवं पौराणिक कथाओं तथा ग्रंथों के आधार पर एक प्रमाणित व एतिहासिक पुस्तक है। हमने अपनी इस मुलाकात में सामाजिक मूल्यों, भारतीय संस्कृति व पुरातन इतिहास आदि विषयों एक दुसरे के अनुभवों और विचारों को साझा किया।
हम दोनों का विचार था कि भारत के इतिहास को फिर से लिखे जाने की आवश्यकता है, क्योंकि वर्तमान में पाठ्यपुस्तकों में जो इतिहास पढ़ाया जाता है वह या तो अधूरा है या वह सत्य से बहुत दूर है। जिस देश के लोग अपने इतिहास को अच्छे से नहीं जानते या जिस देश के लोग अपने इतिहास को लेकर भ्रम की स्थिति में रहते हैं उनमें कभी भी अपने देश के प्रति वैसे भक्ति नहीं रहेगी, जैसी होना चाहिए।
यह सही है कि अतीत के बुरे वक्त को भुलकर नए भविष्य को गढ़ना चाहिए, लेकिन यह भी उतना ही सही है कि जो लोग अतीत से सीख नहीं लेते वह अपना भविष्य बिगाड़ लेते हैं।
हमारे जीवन में अनेक महत्वपूर्ण मोड़ आये हैं, इनमें से प्रत्येक मोड़ पर कुछ प्रतिभाशाली व्यक्तियों ने हमारी मदद की है। हमारा प्रयास रहता है कि हम अपने अतीत से शिक्षा ग्रहण कर अपने जीवन के कुछ समय को किसानों, युवाओं व समाज की मदद के लिए समर्पित करें। डॉ अशोक त्रिपाठी से यह हमारी एक बेहतरीन मुलाकात हुई।
इस पुस्तक के लेखक डॉ अशोक त्रिपाठी ने इनके समकालीन इतिहास के विभिन्न पहलुओं में जटिलताओं का वर्णन भी किया है। हम उम्मीद करते है कि देश में आने वाली पीढ़ी को इस पुस्तक के जरिए नागा सन्यासियों के बारे में अनेकों रोचक तथ्यों का पता चलेगा पता चलेगा।
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